Road safety Week

रायपुर। प्रदेश में जनजागरूकता के लिए दिव्यांग बच्चों के सुर अब पहचाने जाने लगे हैं। दिव्यांगजन सामाजिक भागीदारी निभाने में किसी से पीछे नहीं हैं। समाज ने उन्हें जो दिया उससे अधिक वो लौटाने को तैयार हैं। ‘मोर रायपुर स्वच्छ रायपुर’ थीम सांग गाकर स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के बाद अब दिव्यांग बच्चे अपने सुरों के माध्यम से सड़क सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे। समाज कल्याण विभाग द्वारा राजधानी रायपुर में संचालित शासकीय दिव्यांग महाविद्यालय के दृष्टिबाधित विद्यार्थियों द्वारा यातायात सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गीत रिकॉर्ड किया गया है। यातायात डी.एस.पी. सतीश ठाकुर के निर्देशन में 31वें सड़क सुरक्षा सप्ताह के लिए बनाया गया बच्चों का यह वीडियो अब रास्तों में डिस्प्ले किया जाएगा। इनकी स्वरलहरियां अब 18 जनवरी से राहगीरों को सड़क में चलने के सुरक्षा नियमों समझाते हुए चौक-चौराहों-रास्तों में सुनाई देंगी। साथ ही यू-ट्यूब में वीडियो लांच किया जाएगा।

‘सड़क सुरक्षा जरूरी’ का संदेश देते हुए गीत को दृष्टिबाधित छात्रा कुमारी रानू साहू, कुमारी गायत्री, कुमारी उमलेश्वरी सहित छात्र सर्व श्री अनिल मंडावी, हरीश चौहान, दुष्यंत, चंद्रशेखर, पंचराम, अमृत और छत्तर ने अपने सुरों से सजाया है। इन दिव्यांग बच्चों द्वारा प्रदेश के राजभवन सहित लोक निर्माण विभाग, राज्य विद्युत मंडल में भी प्रस्तुतियां दी हैं। इसके साथ ही इन्होंने विश्वविद्यालयीन युवा उत्सव प्रतियोगिताओं में भागीदारी की है।

राज्य सरकार द्वारा दिव्यांगों को समाज की मुख्यधारा में लाकर आर्थिक रूप से निर्भर बनाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए दिव्यांग प्रतिभाओं को उचित मंच प्रदान कर आगे लाने का प्रयास किया जा रहा है। महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती शिखा वर्मा ने बताया कि शासकीय दिव्यांग महाविद्यालय छत्तीसगढ़ का एकमात्र और देश के 5 श्रेष्ठ दिव्यांग महाविद्यालयों में से एक है। महाविद्यालय इंदिरा कला विश्विद्यालय खैरागढ़ से संबद्ध है। यहां दिव्यांग बच्चों के बेहतर भविष्य निर्माण के लिए विद्यार्थियों को पूरी शिक्षा नि:शुल्क दी जाती है। यहां छात्र-छात्राओं को गायन, तबला वादन और चित्रकला तीन विभागों के अंतर्गत स्नातक तथा स्नातकोत्तर तक शिक्षा दी जाती है। दृष्टिबाधित और अस्थिबाधित बच्चों को गायन और वादन तथा श्रवण बाधित बच्चों को चित्रकला सिखायी जाती है। वर्तमान में महाविद्यालय में छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के 38 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। उन्होंने बताया कि दिव्यांगता बच्चों के शरीर में है हौसलों में नहीं। बच्चे आत्मनिर्भर होने, समाज में अपनी पहचान बनाने के साथ समाज को बहुत कुछ लौटाने का जज्बा भी रखते हैं।