Champkeshwar Naath


Champkeshwar Naath (चंपारण) रायपुर से 60 किलोमीटर दूर चम्पारण्य वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य जी की जन्म-स्थली होने के कारण यह उनके अनुयायियों का प्रमुख दर्शन स्थल है। यहॉ चम्पकेश्वर महादेव का पुराना मन्दिर है। इस मन्दिर के शिवलिंग के मध्य रेखाएँ हैं। जिससे शिवलिंग तीन भागों में बँट गया है, जो क्रमशः गणेश, पार्वती व स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं।

क्या आपको पता है नक्सली राज्य छत्तीसगढ़ में भी वृंदावन सरीखा पावन धाम है। जी हां यहां वृंदावन की तर्ज पर ही सारे मंदिर बनाए गए हैं, प्रभु की सेवा भी वैसी ही होती है। हम बात कर रहे हैं चंपारण की।
चंपारण छत्तीसगढ का बहुत ही रमणीय स्थल है। यहां चम्पेश्वर महादेव का मंदिर तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल होने से यहां प्रतिदिन दूर-दूर से सैलानी आते हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य के अनुयायी वैसे तो पूरे देश में फैले हैं, लेकिन ज्यादातर गुजरात व महाराष्ट्र में है। विदेशों में जाकर बसे लोग भी जो पुष्टि संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं उनका भी चंपारण से नियमित सम्पर्क बना रहता है। चम्पेश्वर महादेव के मंदिर में बहुत ही प्राचीन शिवलिंग है जिसमें भगवान शंकर, माता पार्वती व गणेश जी के स्वरूप है।
इसी परिसर में महाप्रभु वल्लभाचार्य का भव्य मंदिर है वे इसी स्थल पर प्रकट हुए थे।

इतिहास

ऐसी किवंदती है कि वल्लभाचार्य के माता-पिता लगभग 550 साल पहले बनारस से मुगल साम्राज्य में हो रहे अत्याचार के कारण पदयात्रा करते हुए चम्पेश्वर धाम में आए थे। महाप्रभु के पिता का नाम श्री लक्ष्मण भट्ट तथा माता का नाम श्रीमती इल्लमा गारू था।

बताते हैं माता इल्लमा गारू को अष्ट मासा प्रसव हुआ।उन्होंने नवजात शिशु को मृत समझकर उसे पत्तों में ढक दिया और आगे बढ़ गये। अगले पड़ाव में रात्रि में उन्हें श्रीनाथ जी ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि मैं जगत के कल्याण के लिए तुम्हारे उदर से प्रकट हुआ, लेकिन आपने मुझे मृत समझकर वहीं छोड़ दिया।श्रीनाथ ने कहा कि तुम लोग वापस आकर मुझे अंगीकार करो। दूसरे दिन वे दोनों वापस चम्पेश्वर धाम आये तो देखा कि एक अग्निकुंड में नवजात शिशु है जो दाहिये पैर के अंगूठे को चूस रहा है। अग्निकुंड के चारो तरफ सात अवघड़ बाबा थे जो चम्पेश्वर में ही रहते थे। इन्होंने बाबाओं से कहा कि अग्निकुंड में विराजमान शिशु हमारी संतान है हम लोग इसे मृत समझकर यही छोड़ गए थे।

बाबाओं ने कहा कि अग्निकुंड के मध्य में होने के कारण हम लोग इस बालक को स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं। आपके पास क्या प्रमाण है कि आपका बालक है ? तब माता इल्लमा गारू ने श्रीनाथ जी का ध्यान किया।महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पुष्टि संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। चम्पारण उनका प्राकट्य धाम होने के कारण पुष्टि संप्रदाय के लोग इस स्थल को सर्वश्रेप्ठ पवित्र भूमि मानते हैं। कहते हैं कि महाप्रभु ने अपने जीवनकाल में तीन बार धरती की पैदल परिक्रमा की। परिक्रमा के दौरान उन्होंने देश के 84 स्थानों पर श्रीमद् भागवत कथा का पारायण किया। इन स्थानों को पवित्र भूमि माना जाता है उनमें से एक चंपारण भी है। चूंकि यह प्राकट्य स्थल भी है इसलिए यहां का महत्व सबसे ज्यादा है।

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