परंपरा को अगर विज्ञान का साथ मिल जाए तो सोने पे सुहागा ही समझिए। हमारे
छत्तीसगढ़ में घुरूवा के माध्यम जैविक खाद तैयार करने की परंपरा रही है। अब
इसी पारंपरिक घुरूवा को हम वैज्ञानिक विधि से उन्नत कर रहे हैं उन्नयन के
बाद 30 से 40 दिनों में बढ़िया कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाती है। हमारे
गौठानों में कम्पोस्ट खाद के लिए नाडेप टैंक, वर्मी कम्पोस्ट टैंक तैयार
किए जा रहे हैं। जिले के 216 गौठानों में 786 नाडेप टैंकों में भी कम्पोस्ट
खाद बनाई जा रही है। इस कार्य में महिला स्व-सहायता समूहों को जोड़कर
उन्हें आय अर्जित करने के अवसर भी मिलने लगे हैं। अब तो खाद तैयार भी हो गई
और महिलाओं ने बिक्री भी शुरू कर दी। पिछले दिनों ढ़ौर की महिलाओं ने
उद्यानिकी विभाग को 1 टन कम्पोस्ट खाद बेचकर 10 हजार रुपए अर्जित किए।
इसके अलावा कृषकों के खेत, बाड़ी व उपयुक्त स्थलों पर नाडेप, भू-नाडेप,
वर्मी कम्पोस्ट व बायोगैस प्लांट का निर्माण कृषक स्वयं के द्वारा मनरेगा
और अन्य विभागीय योजनाओं के माध्यम से कर रहे हैं। कृषि विभाग के प्राप्त
जानकारी के मुताबिक वर्तमान में किसानों के घुरूवा उन्नयन का कार्यक्रम
वृहत पैमाने पर लिया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में घुरूवा उन्नयन
हेतु 7980 का लक्ष्य मिला था जिसकी शत-प्रतिशत पूर्ति की गई है। इसी प्रकार
चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 में 14716 लक्ष्य के विरूद्ध अद्यतन 1035 की
पूर्ति कर दी गई एवं शेष लक्ष्य की पूर्ति हेतु कार्य जारी है। जिसका उपयोग
किसान भाई अपने खेतों और बाड़ियों में कर रहे हैं। जैविक खाद के उत्पादन को
लगातार प्रोत्साहित करने उन्नत घुरूवा का निर्माण किया जा रहा है। राज्य
सरकार द्वारा जैविक खेती को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।
गौठानों में बनी खाद का उपयोग खेतों और बाड़ियों में किया जा रहा है। मांग
भी बढ़ रही है। हमारी परम्पराओं को सहेजने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था
को सबल करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने नरवा गरूवा घुरूवा बाड़ी योजना
शुरू की जिससे आज हम सुराजी गांव की अवधारणा को साकार करने की दिशा में आगे
बढ़ रहे हैं। घुरूवा इस योजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।