दूरस्थ शिक्षा: आजीवन शिक्षा का माध्यम, राज्यपाल का संदेश

joharcg.com राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने हाल ही में राजा भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय के सातवें दीक्षांत समारोह में कहा कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दौर में दूरस्थ शिक्षा आजीवन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन बन चुकी है। उन्होंने बताया कि यह प्रणाली विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों, दिव्यांगजन, कामकाजी स्त्री-पुरुष और युवाओं के लिए शिक्षा का सहज और सरल माध्यम है।

राज्यपाल ने प्रख्यात विभूतियों को प्रदान कीं मानद उपाधियां

संबोधन में राज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय को चाहिए कि वह दूरस्थ शिक्षा से वंचित वर्गों के लिए सामाजिक सेवाओं और उनके अधिकारों की रक्षा के प्रयासों को मजबूती दे।

स्वर्ण पदक विजेता और उपाधि प्राप्तकर्ता हुए सम्मानित

राज्यपाल ने विद्यार्थियों को उनके माता-पिता और गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने की सलाह दी। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्राप्त ज्ञान और कौशल का उपयोग कर वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने अनुशासन, समय प्रबंधन और आत्मविश्वास के महत्व पर भी जोर दिया।

राजा भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय का सातवॉ दीक्षांत समारोह संपन्न

इस दीक्षांत समारोह में कई प्रख्यात विभूतियों को मानद उपाधियों से भी सम्मानित किया गया, जिसमें डॉ. अनिल काकोड़कर और डॉ. आतिश श्रीपाद दाभोलकर जैसे नाम शामिल थे। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय द्वारा रामचरित मानस और भगवत गीता में डिप्लोमा प्रदान करने की पहल की सराहना की।

रामचरित मानस और गीता में डिप्लोमा देने की पहल सराहनीय

राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा रामचरित मानस से सामाजिक विकास एवं भगवत गीता में डिप्लोमा प्रदान करना अत्यंत सराहनीय पहल है। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा सिकल सेल एनीमिया जागरूकता के लिए ग्रामीण अंचलों में किए जा रहे उन्मुखीकरण प्रयासों की सराहना की। श्री पटेल ने कहा कि तेजी से बदलती दुनिया में उच्च मानकों के पाठ्यक्रमों के साथ विश्वविद्यालय विषय विशेषज्ञों द्वारा गुणवत्तापूर्ण अध्ययन सामग्री तैयार कराये। पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता की निरंतर समीक्षा भी की जानी चाहिए। कौशल उन्नयन और भविष्य की जरूरतों के अनुसार अपने कार्यक्रमों को डिजाइन करें। विद्यार्थियों को ज्ञान एवं कौशल के सहज आदान-प्रदान का प्लेटफार्म भी उपलब्ध करायें।

उन्होंने विश्वविद्यालय से आग्रह किया कि वे उच्च मानकों के पाठ्यक्रमों के साथ गुणवत्तापूर्ण अध्ययन सामग्री तैयार करें, ताकि विद्यार्थियों को वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा मिल सके।

इस कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री श्री इंदर सिंह परमार, विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ. संजय तिवारी, तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

यह दीक्षांत समारोह न केवल विद्यार्थियों के लिए उपलब्धियों का प्रतीक था, बल्कि दूरस्थ शिक्षा के महत्व को भी उजागर करता है।