Shringi Rishi Ashram, Sihawa
Shringi Rishi Ashram, Sihawa Dhamtariयह सिहावा का एक प्रमुख आश्रम है। श्रृंगी ऋषि सप्तऋषियों मेंं से एक है। शृंगी ऋषि ही थे जिनके आशीर्वाद से राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति हुई। यहां एक बंजर सी पहाड़ी है जिस पर बड़े-बड़े पत्थर और कुछ पौधे दिखाई देते हैं। नीचे बराबर मेंं ही महानदी बहती है। अपने उद्गम से मुकाबले यहां यह कुछ बड़ी हो गई है। अब यह छोटे रूप मेंं नहीं बहती बल्कि अब इसका अपना क्षेत्र है।
यहां पहाडी पर भी एक छोटा सा कुंड है, कुछ लोग कहते हैं कि महानदी का एक उद्गम यह भी है। इसका सीधा सम्बन्ध नीचे बह रही महानदी से है। अगर इस कुण्ड मेंं फूल आदि डाले जायें तो वे महानदी मेंं पहुंच जाते हैं। इस शुष्क पथरीली पहाड़ी के शीर्ष पर पानी का कुण्ड होना एक चमत्कार ही है। शायद कोई भूविज्ञानी ही बता सकता है कि यहां कुण्ड मेंं पानी क्यों है। वो भी ऐसे कुण्ड मेंं जो सीधा नीचे महानदी से जुड़ा है। यह भी प्रसिद्ध है कि यहां पहाडी पर खोखले पत्थर हैं जो बजते हैं।
पहाड़ी से नीचे उतरने पर फि र एक आश्रम मिलता है। यहां पर भी कई साधु मिलते हैं। एक ने बताया कि साधु ही वे लोग हैं जो बिना पैसे के पूरे देश मेंं घूम लेते हैं, उन्हें कहीं भी न बोलने चालने की असुविधा होती, न खाने-पीने की और न उठने बैठने की। यहां से निकले पर कर्क आश्रम ही मिलता है। सिहावा की यात्रा का यही अंतिम पड़ाव होता है। यदि पास मेंं बस्तर जैसा प्राकृतिक सौन्दर्य निहारना है तो सिहावा-नगरी एक आदर्श पर्यटन स्थल के रुप मेंं दिखाई देता है।
आश्रम से संबंधित ऐसी है मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार सप्त ऋषियों में सबसे वरिष्ठ अंगिरा ऋषि को माना गया है। सिहावा में महर्षि श्रृंगी ऋषि के आश्रम के दक्षिण दिशा में ग्राम पंचायत रतवा के समीप स्थीत नवखंड पर्वत में उन्होंने तप किया था। यहां एक छोटी सी गुफा में अंगिरा ऋषि की मूर्ति विराजित हैं।
रख-रखाव के अभाव में यह मूर्ति खंडित हो चुकी थी। शासन-प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिलने पर ग्रामीण अंगिरा ऋषि बारह पाली समिति बनाकर इसे सहेजने में लगे हुए हैं। आश्रम के पुजारी मुकेश महाराज ने बताया कि अंगिरा ऋषि अपने आश्रम में कठोर तपस्या करते थे। वे अग्नि से भी अधिक तेजस्वी बनना जाना चाहते थे। श्रद्धालुओं में उनके प्रति अटूट आस्था है। जो भी दर्शन करने आते हैं, उनकी मनोकामना अवश्यपूर्ण होती है।
नहीं हो सका विकास
पर्यटन के साथ-साथ इस आश्रम से लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है। पर्यटन विभाग की अनदेखी के चलते आश्रम का अब तक विकास नहीं हो सका है। ग्रामीणों का कहना है कि अंगिरा ऋषि बाहर पाली समिति यहां के रख-रखाव पर ध्यान नहीं देते तो, अब तक इस आश्रम का अस्तित्व ही मिट जाता। वे निस्वार्थ भाव से आश्रम की सेवा में लगे हुए हैं।
पर्वत के नीचे यज्ञ शाला
पर्वत शिखर पर अंगिरा ऋषि के अलावा अलावा भगवान शिव, गणेश, हुनमान की मूर्तियां स्थापित है। पर्वत के नीचे एक यज्ञ शाला भी है। यहां अंगिरा ऋषि का चिमटा और त्रिशुल हैं, जिसकी पूजा की जाती है। सात से अधिक गुफाएं हैं।पर्वत शिखर पर एक शीला में भगवान श्रीराम का पद चिन्ह भी है। जब श्रीराम वनवास के लिए निकले थे, तब उनका आगमन अंगिरा आश्रम में हुआ था। उनके पद चिन्ह उसी समय का है।
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