Ganesh Mandir

Ganesh Mandir दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 31 किमी तथा राजधानी से 395 किमी दूर बारसूर में स्थित है, 32 खंबों वाला यह ऐतिहासिक मंदिर। दो गर्भगृह वाले इस मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं। 895 वर्ष पुराने इस मंदिर का पुनर्निर्माण वर्ष 2003 में पुरातत्व विभाग द्वारा कराया गया था। बारसूर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार बत्तीसा मंदिर का निर्माण ईस्वी सन् 1030 में नागवंशीय नरेश सोमेश्वरदेव ने अपनी रानी के लिए करवाया था। यहां के दो शिवालय में राजा और रानी शिव की अलग-अलग आराधना करते थे।

बरसुर अथवा ‘बारसुर’ छत्तीसगढ़ राज्य के दन्तेवाड़ा ज़िले में स्थित एक छोटा-सा शांत ग्राम है। यह माना जाता है कि प्राचीन समय में बरसुर में लगभग 147 मन्दिर और लगभग इतने ही तालाब थे। संरक्षण के अभाव में इनकी ख़ूबसूरती में कमी आई है, लेकिन यह आज भी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं।

  • मन्दिरों और तालाबों के लिए प्रसिद्ध बरसुर गीदम की उत्तरी दिशा में 24 किलोमीटर की दूरी पर इन्द्रावती नदी के किनारे पर स्थित है।
  • शताब्दी दर शताब्दी इस स्थान का महत्व कम होता गया और अब यहाँ उन मंदिरों के अवशेष मात्र रह गए हैं, जिनके लिए कभी यह स्थान प्रसिद्ध था।
  • बरसुर मंदिरों और तालाबों का शहर है। सदियों पुराने मंदिर और उतने ही पुराने नदियाँ और झरने, जैसे हिमाचल के मंडीको मंदिरों कि बहुतायत की वजह से “छोटी काशी” कहा जाता है, छत्तीसगढ़ में बरसुर को भी वही दर्ज़ा प्राप्त है।
  • एक समय वह भी था, जब यहाँ 147 मंदिर और इतने ही तालाब हुआ करते थे। आज मंदिर टूट-फूट चुके हैं और तालाब सूख चुके हैं।
  • कहने को तो बरसुर के निवासी आदिवासी हैं, लेकिन इनके भवन, मंदिर और जल सरंक्षण के तरीके देखकर ये समझ नहीं आता कि ये लोग पिछड़े हुए हैं या ऐसे ही इनको धक्का देकर जबरदस्ती मुख्यधारा में धकेला जा रहा है।
  • इन्द्रावती नदी के साथ-साथ यह ग्राम बसा हुआ है। यहीं से नक्सलियों के गढ़ अबुझमाड़ के लिए रास्ता जाता है।
  • बरसुर के बसअड्डे पर उतरते ही मंदिरों के दर्शन हो जाते हैं। यहाँ पांच प्रसिद्ध मंदिर हैं-
  1. मामा-भांजा मंदिर
  2. चंद्रादित्य मंदिर
  3. गणेश मंदिर
  4. बत्तीसा मंदिर
  5. जंगल में स्थित एक प्राचीन मंदिर

मान्यता है कि यहां के अलंकृत नंदी के कान में अपनी प्रार्थना करने से मनौती पूर्ण होती है। बत्तीसा मंदिर के पीछे 30 एकड़ का क्षेत्र बारसूर का गढ़ माना जाता है। यहां मकर संक्रांति पर तीन दिवसीय मेला लगता है।

एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु के वामन अवतार से राजा बलि से तीन पग जमीन मांगने के बाद बलि को पाताल पहुंचा दिया था। इस घटना के बाद बलि के पुत्र बाणासूर ने दण्डकारण्य वनांचल में बाणासूरा नामक नई राजधानी बसाई थी। यहां 147 देवालय और इतने ही तालाब थे।

श्रीकृष्ण के पुत्र अनिरूद्ध के बाणासूरा प्रवेश करते ही यहां के किले का ध्वज गिर गया। इस दिन से ही बारसूर का पतन प्रारंभ हुआ था, परंतु शिवकृपा के कारण बारसूर में कभी सूखा नहीं पड़ा। बाणासूर की पुत्री उषा और मंत्री कुभांड की पुत्री चित्रलेखा अंतरंग सहेलियां थीं।

ये दोनों गणेश भक्त थी। बाणासूर ने इनके लिए ही विशालकाय गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कराया था, बारसूर की यह गणेश प्रतिमा आज विश्व की तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा के रूप में ख्याति प्राप्त है।

सावन माह में यहां आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस शिवालय में जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते है। इसके लिए मंदिर समिति द्वारा विशेष तैयारी की जाती है। मंदिर के आसपास फूल-माला और पूजा सामग्री की दुकानें सजी रहती हैं।