joharcg.com देशभर से आए नृत्य दलों ने इस साल के सांस्कृतिक महोत्सव में आदिवासी लोक नृत्यों की अद्भुत झलक पेश की। कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय आदिवासी संस्कृति और उनकी विविधताओं को एक मंच पर प्रदर्शित करना था। इस कार्यक्रम में न केवल देश के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया, बल्कि दर्शकों को भारतीय आदिवासी संस्कृति से जुड़ी अनूठी धरोहर से भी परिचित कराया गया।

समारोह में आदिवासी नृत्य कला की विभिन्न शैलियाँ पेश की गईं, जिनमें छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की पारंपरिक लोक नृत्य शैलियाँ प्रमुख थीं। हर नृत्य दल ने अपने क्षेत्रीय अद्भुत लोक संगीत और पारंपरिक वेशभूषा में प्रस्तुति दी, जिससे हर प्रस्तुति अपनी अलग ही पहचान बनाती दिखी।

कार्यक्रम की शुरुआत छत्तीसगढ़ के ‘दंडिया नृत्य’ से हुई, जिसमें ढोलक और तमाखी के साथ रंगीन वस्त्रों में सजे कलाकारों ने नृत्य की लय और ताल के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद, झारखंड के ‘सांझ नृत्य’ ने दर्शकों को अपनी भव्यता से चौंका दिया, जबकि उड़ीसा के ‘छऊ नृत्य’ ने शास्त्रीय कला की धारा को सजीव कर दिया।

दर्शकों ने इन नृत्य शैलियों में लोक जीवन की सरलता, परंपराओं और मान्यताओं की गहरी छाप देखी। प्रत्येक नृत्य के पीछे एक कहानी छिपी हुई थी, जो उस क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती थी। कार्यक्रम में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी ने हिस्सा लिया और इन नृत्यों को देखना उनके लिए एक यादगार अनुभव बन गया।

इस कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया गया था, और यह न केवल आदिवासी समुदायों के प्रति सम्मान का प्रतीक था, बल्कि देश की सांस्कृतिक विविधता को भी उजागर करता था। आयोजकों का कहना था कि इस तरह के महोत्सव न केवल आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने का काम करते हैं, बल्कि इसे समग्र राष्ट्रीय धरोहर के रूप में प्रस्तुत करने में भी मदद करते हैं।

इस अनोखे आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की सांस्कृतिक विविधता में नृत्य भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और हमें इसे आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।

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