SITABHAGHRA CAVES RAMGARH
SITABHAGHRA CAVES RAMGARH छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित सीता बेंगरा गुफा देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है। इसका गौरव इसलिए भी अधिक है क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना मेघदूतम ने यहीं आकार लिया था। इसलिए ही इस जगह हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। देश में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहां हर साल बादलों की पूजा करने का रिवाज है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं। मेघदूतम में उल्लेख है कि यहां अप्सराएं नृत्य किया करती थीं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 280 किलोमीटर दूर है रामगढ़। अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है। सीता बेंगरा गुफा पत्थरों को गैलरीनुमा काट कर बनाई गई है। यह 44.5 फीट लम्बी एवं 15 फीट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेशद्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फीट है, जो भीतर जाकर 4 फीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों में छेद किया गया है। गुफा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं।
बादलों की पूजा
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना ‘मेघदूत’ यहीं लिखी थी। कालीदास ने जब उज्जयिनि का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। भारत में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।
रामायण से जुड़ा है इतिहास
किवदंती है कि यहां वनवास काल में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में भेंगरा का अर्थ कमरा होता है। यानी यह सीता का कमरा था। प्रवेश द्वार के समीप खंभे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर भगवान राम के चरण चिह्न अंकित हैं। मान्यता है कि ये चरण चिह्न महाकवि कालिदास के समय भी थे। मेघदूतम में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं (अप्सराओं) की उपस्थिति का भी उल्लेख मिलता है।
पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार यहां मिले शिलालेखों से पता चलता है कि सीताबेंगरा नामक गुफा ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी सदी की है। देश में इतनी पुरानी और दूसरी नाट्यशाला कहीं नहीं है। यहां उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक करवाए जाते रहे होंगे। 1906 में पूना से प्रकाशित वी के परांजपे के शोधपरक व्यापक सर्वेक्षण के “ए फ्रेश लाइन ऑफ़ मेघदूत” में भी यह बताया गया है कि रामगढ़ (सरगुजा) ही राम की वनवास स्थली और मेघदूतम की प्रेरणास्रोत रामगिरी है।
लक्ष्मण रेखा भी
गुफा के बाहर दो फीट चौड़ा गड्ढा भी है जो सामने से पूरी गुफा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है, इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफा के बाहर एक सुरंग है। इसे हथफोड़ सुरंग के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है। यहां पहाड़ी में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमाएं भी हैं।
स्थापत्य
सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं। सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है। इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके।
गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे ‘हथफोड़ सुरंग’ के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई क़रीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ द्वारा संरक्षित किया गया है।
यहां से निकलती है चन्दन मिट्टी
रामगढ़ की पहाड़ी में चंदन गुफा भी है। यहां से लोग चंदन मिट्टी निकालते हैं और उसका उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है। इतिहासविद रामगढ़ की पहाड़ियों को रामायण में वर्णित चित्रकूट मानते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार महाकवि कालिदास ने जब राजा भोज से नाराज हो उज्जयिनी का परित्याग किया था, तब उन्होंने यहीं शरण ली थी और महाकाव्य मेघदूत की रचना इन्हीं पहाड़ियों पर बैठकर की थी।
रामगढ़ महोत्सव
रामगढ़ की पहाड़ियों को संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध महाकवि कालिदास की सृजन भूमि के रूप में पहचाना जाता है। इतिहासकार डा. रमेंद्रनाथ मिश्र के मुताबिक इन पहाड़ियों की गुफाओं में विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला होने के प्रमाण मिले हैं। यहां 2 जून से रामगढ़ महोत्सव का आयोजन हो रहा है। पहले दिन इसमें रामगढ़ की नाट्यशाला पर चर्चा भी होगी।