Paramparik Chhattisgarhi pakwan
Paramparik Chhattisgarhi pakwan चीला: चांउर पिसान. चावल के आटे को पानी में घोलकर, तवे पर हल्की आंच में तेल से सेंका गया, नमकीन चीला।
फरा: चावल के आटे ;कभी-कभी पका चावल भी मिलाकर, को नमक डालकर गूंधकर, फिंगर रोल बनाकर, भाप से पकाकर, तिल-मिर्च से छौंक कर बनाया गया नमकीन फरा।
मुठिया: चावल के आटे ;कभी.कभी पका चांवल भी मिलाकर, को नमक डालकर गूंधकर, मुट्ठी से गोल आकार बनाकर, भाप से पकाकर, तिल-मिर्च से छौंक से सेंका गया नमकीन मुठिया।
चांउर रोटी अंगाकर: चावल के आटे को गूंधकर, अंगार में सेंकी गयी, मोटी नमकीन रोटी।
चउँसेला: गरम पानी में नमक मिलाकरए चावल के आटे को गूंधकर, रोटी के समान बेलकर, तेल से तली गई पूड़ी।
धुसका: चावल के आटे को गूंध कर, तेल में हल्की आंच पर सेंकी गयी, नमकीन मोटी रोटी।
बरा या बड़ा- उड़द दाल से बने इस व्यंजन का शादि-ब्याह और पितर में विशेष चलन है. इसे बनाने के लिए उड़द और मूंग दाल को भिगोकर पीसा जाता है. फिर इसमें कुछ मसाले मिलाकर बड़े के आकार में तला जाता है. इसे सादा या फिर नमक मिले पानी में डालकर भी खाया जाता है.
धनिया, मिर्च, टमाटर, लहसुन की चटनी: टमाटरए मिर्च, धनिया, प्याज, लहसुन की सरसों के छौंक से तेल में पकायी गयी चटनी।
अईरसा: चावल को रात भर डूबा कर रखे और अगली सुबह पानी अलग कर अच्छे से थोडा भुरभुरा पिस ले .अब गुड को अच्छे से कूट कर चावल के आटे के साथ मिलाएं . अब गुंथे हुए मिक्सचर के लोई बनाकर उसे गोलाकार और थोड़े चपते आकर दे और ऊपर से सफ़ेद तिल मिलकर गरम तेल में भूरा होने तक तले .गरम अनारसा तैयार है ..जिसे आप महीने तक पैक करके भी रख सकते हैं
ठेठरी: बेसन में जीराए अजवायनए नमक मिलाकरए पानी से गूंधकर उसकी पतली डोर बनाकरए मोड़कर तेल से तला गया नकमीन।
खुरमी: गेंहू आटे में मोयन डालकरए मिलाकरए गुड़पानी के गूंधकरए मुठ्ठी से आकर देकरए तेल में तला मिष्ठान।
पपची: गेंहू के आटे में थोड़ा चावल का आटा मिलाकर, मोयन डालकर, पानी से गूंधकर, मोटे चौकोर आकार में तेल मे तलकर, गुड़ध्शक्कर की चाशनी ;उखड़ा पागद्ध में डुबाकर, तैयार सूखा मिष्ठान।
करी लाडू: बेसन के सेव को गुड़ की चाशनी में मिलाकर, मुट्ठी से गोल आकार दिया गया मीठा पकवान।
बूंदी लाडू: बूंदी को शक्कर की चाशनी में मिलाकर, मुट्ठी से दबाकर तैयार किया गया मीठा पकवान।
खाजा: मैदे में मोयन डालकर, पानी के साथ मीड़ कर, लोई बनाकर, बड़े आकार में बेलकर, इनके 4.5 परत, हर परत के बीच घी और मैदे को मिलाकर तैयार किए गया लेप लगाकर, सभी को गोल लपेटकर, लपटे गए रोल को छोटे.छोटे टुकड़ों में काटकर, टुकड़ों को बेलकर, हलका बड़ा आकार देकर, तलकर, उखड़ा पाग के गुड शक्कर की चाशनी में मिलाकर, तैयार सूखा मिष्ठान।
सोंठ के लड्डू : सर्दी में शरीर को गर्म रखने के लिए देसी चीजें खूब खाई जाती हैं. गुड़ और सोंठ के लड्डू गांवों में खासकर जाड़े दिनों में खूब बनते हैं. इन लड्डुओं को डिलिवरी के बाद मां को खिलाने से उसकी कमजोरी दूर होती है.
लाल चींटी की चटनी– छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में लाल चींटी, जिसे देहाती भाषा में मटा बोला जाता है, की चटनी बहुत खाई जाती है. दरअसल, यह चींटी न होकर इसके अंडे से बनती है.
मालपुआ – चावल को कूट कर इसमें गड़ मिला कर बनाया जाता है. यह खास पकवान है जो छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश में खूब पसंद किया जाता है. इन राज्यों में मैदा का इस्तेमाल किया जाता है. जबकि छत्तीसगढ़ में चावल के आटे से मालपुआ बनता है. इसके अलावा यहां गुझिया भी बड़े पैमाने पर बनाई जाती है.
सोहारी- शादि-ब्याह और भोज में पतली और बड़ी पूरी-सोहारी बनाई जाती है. इसी तरह से मैदे का पूड़ा भी बनता है जिसे शादी ब्याह के मौके पर ससुराल पक्ष को भेजा जाता है.
मुरकू – चावल से : अक्सर देखा गया है कि घरों में चावल बच जाते हैं और बाद में उन्हें फेंक दिया जाता हैं। जबकि आप उन चावल का इस्तेमाल मुरकू बनाने में कर सकते हैं। तो आइये जानते हैं ‘मुरकु’ बनाने की लिए चाहिये।
– एक बड़ा कप बचा हुआ चावल
– एक छोटा चम्मच कलौंजी
– एक बड़ा चम्मच तेल
– स्वादानुसार नमक
– जरूरत के अनुसार पानी
तिल के लड्डू : मकर संक्रांति के आते ही हर घर में तिल गुड़ के लड्डू बनने लग जाते हैं। वैसे तो तिल के गुड़ लड्डू को खोया और घी डालकर भी बनाया जाता है। लेकिन मैं आपको बिल्कुल आसाना और त्योहारों पर बनने वाले तिल गुड़ के लड्डू की रेसिपी बताउंगी। ये फटाफटा बन जाता है और कई दिन चलता भी है। सिर्फ तिल और गुड़ से बनने वाले ये लड्डू स्वाद में कम नहीं होता है। तिल गुड़ का लड्डू घर में बनाकर रख लीजिए और जब जी करे इसे खाइए और जमकर पानी पीजिए। तिल गुड़ के लड्डू का साइज थोड़ा छोटा रखना चाहिए। इतना छोटा कि मुंह में आसानी से आ जाए। क्योंकि कभी कभी तिल गुड़ के लड्डू सख्त बन जाते हैं ऐसे में छोटे लड्डू को आसानी से खा पाएंगे।
मुर्रा के लड्डू : सामग्री: मुर्रा (फूला हुआ चावल), गुड़ (गुड़) एक पैन में गुड़ (गुड़) लें और पानी मिलाएँ। उन्हें तब तक गर्म करें जब तक यह तार देना शुरू न कर देता है या यह गाढ़ा न हो जाए। मुर्रा को गुड़ की चाशनी में मिलाएं। अपनी हथेली पर थोड़ा पानी डालें और मिश्रण से बॉल्स बनाना शुरू करें। मुर्रा के लड्डू परोसने के लिए तैयार हैं। नोट: मुर्रा लड्डू बहुत ही स्वादिष्ट मीठी पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन तैयारी है। बच्चों द्वारा तैयार और पसंद किया जाता है
करमता भाजी : करमता भाजी छत्तीसगढ़ के पारंपरिक भाजी के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इसे दुनिया भर में पानी के पालक के रूप में भी जाना जाता है और चीन और दक्षिण एशियाई देशों में कांगकांग के रूप में प्रसिद्ध है। एक बार उगाए जाने वाले करमता भाजी के कई स्वास्थ्य लाभ हैं
पूरन लड्डू : एक बर्तन में बेसन का पतला पेस्ट बना लें। अब एक कड़ाई में तेल गरम करें और छननी या झारे की मदद से बूंदी तल ले। दूसरे कड़ाई में घी डाल कर आटे को अच्छी तरह से भून लें और स्वाद अनुसार पीसी शक्कर या गुड थोड़ी कम मात्रा में मिलाएं। गैस बंद कर थोड़ा ठंडा होने दे। अब एक पतीला लें और उसमें गुड की गाडी चासनी बनायें और स्वाद के लिए इलायची पाउडर मिलाएं अब तैयार बूंदी को उसमें डूबा दें ।
आटे के मिश्रण से अब गोल लड्डू तैयार करें। लड्डू के चारो तरफ बूंदी की घनी परत चढ़ाएं। परत किस तरह चिपकनी है ये आपकी सुविधा पर निर्भर करता है चाहे तो आप दोनों हाथो से चिपकाये या फिर लड्डू को बूंदी पर घुमाएं।आपके पूरन लड्डू तैयार हैं।
ये काम आपको थोड़ा परेशानी दे सकता है। पर जब किसी के मुह में कुरमुरी मीठी बूंदी के साथ आटे के मुलायम लड्डू जाएंगे तब आपको अपनी मेहनत पर अजीब सी खुशी होगी।
गुलगुल भाजिया : सबसे पहले २-३ कटोरी गेहूं का आटा लें और पानी , दूध,सुगर या गुड और चुटकी भर बेकिंग सोडा के साथ मिलकर घोल तैयार कर लें .अब कड़ाई में तेल गरम करें और घोल से छोटे छोटे बाल तेल में तल लें और लाल होते तक सेक लें . कभी भी फटाफट सेक कर गुलगुल भाजिया का मज़ा ले.
बिजोरी : काली उड़द दाल को ८ -१0 घंटे तक भींगने दें और बाद में बारीक़ पिस लें .इस पेस्ट को दाल में मिलकर नमक,धनिया पाउडर,मिर्ची पाउडर और सफ़ेद तिल मिलाकर अच्छे से फेंट लें .अब एक सूती के कपडे पर दाल की गोलियां बनायें और उसे चपटा करते जाएँ .अब इसे २ -३ तक सूर्य की रोशनी में सुखने दें .उसके बाद जब थोडा सुख जाए तब दुसरे तरफ पलट दें और कुछ दिन तक अच्छे से रौशनी में सुखने दे बिजोरी खाने के साथ परोसी जाती है और सालो तक रखी जा सकती है
चेच भाजी : चेच भाजी की पत्तियों को शाखाओं से अलग कर लें। जब पत्तियां तोड़ ले उसके बाद अच्छी तरह से पानी में भिगो कर धो लें। अब एक कड़ाई में तेल गर्म करें। उसमें लहसुन के कटे टुकड़े ,२-३ लाल मिर्च और छोटी मूंग या उड़द की बड़ियाँ डाल कर भुने। अब थोड़ा सा पानी डालें और पत्तियों को कड़ाई में डालें , स्वाद अनुसार नमक डालें और ढक्कन से ढक दें। भाजी से पानी निकलने लगेगा। भाजी को तब तक पकने दें जब तक सारा पानी वाष्पीकृत न हो जाए। जब भाजी सुख जाए तब गैस बंद कर दें और गरमा गर्म चावल ,दाल के साथ परोसें।
कुम्हड़ा(कद्दू) भाजी : कुम्हड़ा के मुलायम पत्तों (20-25) को ले कर अच्छे से धो लें। अब पत्तों की शिराओं के बीच के मुलायम भाग को अलग करते जाएँ। और उनको बारीक़ काट लें। अब तरोई या ढोडका (1-2) को छीलकर साफ़ कर लें और उसे भी बारीक काट ले। एक कुकर में थोडा पहले से भीगा हुआ मुट्ठी भर चना दाल ले और कटी हुई भाजी एवं तरोई को थोड़ा पानी डाल कर २-३ सिटी होने तक पकने दे। अब एक कड़ाई में थोड़ा सा तेल गरम करे। उसमें बारीक़ कटी लहसुन और २-३ लाल मिर्च का तड़का दें। उसमें कुकर में पकी हुई भाजी को डालें और अच्छे से मिलाएं। स्वादानुसार नमक मिलाएं। जब तक पूरा पानी वाष्पीकृत न हो जाए तब तक पकने दे अच्छे से सूखने पर गैस को बंद कर दे। खाने पर गरम गर्म चावल और दाल के साथ परोसें।
नोट : छत्तीसगढ़ में भाजी खाने का प्रचलन है और अलग अलग तरह की कई भाजियों को खाया जाता है। कुम्हड़ा(कद्दू) भाजी आसानी से हर घर में उपलब्ध होती है और खनिज लवण से भरपूर होती है।
प्याज भाजी : सबसे पहले प्याज़ के पत्तों को अच्छी तरह से धोएँ। जड़ और छोटे प्याज को काट कर अलग कर लें। और पत्तों को बारीक काट लें। अगर आप छोटे प्याज को डालना चाहते हैं तोह उनको भी अच्छे से धो कर बारीक काट ले। अब एक कड़ाई में तेल गरम करें। उसमें लहसुन के कटे हुए टुकड़े , लाल मिर्च, और १० मिनट पहले भीगी हुई चने की दाल को डाल दे फिर टमाटर के कटे हुए टुकड़ों को मिला कर पकने दें। आधा कप से भी कम पानी डाल कर उबलने दें फिर भाजी को डालें और आधा चम्मच नमक छिड़क कर ढक्कन लगा कर पकने दें ।
थोड़ी देर बाद भाजी में से पानी बहार आने लगेगा और १० मिनट तक मद्धम आंच में पूरा वाष्पीकृत को जाएगा। उसके बाद भाजी को अच्छे से मिलाएं और सूखते तक पकाएं। अब गैस बंद कर दे। गरमा गर्म भाजी का मजा चांवल के साथ ले।
नोट: छत्तीसगढ़ में प्रायतः सभी घरों में प्याज़ भाजी बनायीं जाती है। एक मुख्य सब्जी के साथ भाजी खाने का प्रचलन है। प्याज़ भाजी बहुत स्वास्थवर्धक और खनिज लवण से भरपूर है।
बुहार भाजी : पहले बुहार भाजी को अच्छे से धो लें। कडाई में थोडा पानी लेकर मुट्ठी भर चने की दाल उबाल लें। १-२ उबाल आने पर भाजी को डालें और मिर्च , धनिया ,हल्दी पाउडर ,नमक और थोडा छाछ मिलाएं और ढक कर पकाने देंवें। थोड़े देर बाद जब भाजी मुलायम हो जाए और पक जाए तब गैस बंद कर दें। अब एक दुसरे कडाई में तेल गरम करे और ८-१० लहसून की कलियों के साथ भाजी को तड़का दें।
गरम भाजी का स्वाद गरमा गरम चावल के साथ लें। यह भाजी केवल कुछ महीने ही मिलती है इसलिए इसका विशेष महत्व है और छत्तीसगढ़ी परिवारों में बहुत चाव से खाया जाता है.
लाल भाजी: लाल भाजी के पत्तों को अच्छे से धो कर बारीक काट लें। ६-७ लहसुन की कलियों को छीलकर बारीक काट लें। अब तेल गरम करें ,उसमें लहसुन कटे हुए , १-२ लाल मिर्च ,पहले से भीगा हुआ चना दाल डाल कर कटे हुए पत्तों को डालें और ऊपर से स्वाद अनुसार नमक फैलाएं। थोड़ा सा पानी डालें और ढक कर पकने दें। थोड़े समय बात पत्तों से पानी बहार आने लगेगा , भाजी तब तक पकने दें जब तक पानी पूरा वाष्पीकृत ना हो जाए। लाल भाजी खाने के लिए तैयार हैं।
नोट : लाल भाजी सभी तत्वों से भरपूर शक्तिशाली पत्तियां होती है। सर्वे के अनुसार लाल भाजी युगों से पोषण के लिए ली जाती हैं। छत्तीसगढ़ में शादियों के समय भी परंपरागत रूप से इन्हे वर को खिलाया जाता है।
सलगा बरा : रात भर बिना छिलके वाली उरद की दाल को भिगा लीजिये. सुबह दाल को अच्छे से पिस लीजिये और नमक मिलाकर फेंट लीजिये.
एक कड़ाई में तेल गरम करें , सरसों के दाने ,कर्री पत्ता और कड़ी लाल मिर्च डाल लें
१ कटा टमाटर डालें और नकक मिलकर पकाएं थोड़े देर बाद हल्दी और धनिया पावडर मिलाएं और पकने दें.
साथ साथ एक अलग बर्तन में 500gram दही लें और पानी मिला कर पतला कर लें. उसमें २-३ स्पून बेसन मिलाये और मिला ले
अब इस दही के मिक्स को कड़ाई के मसाले में मिला कर पकने दे.
जब १-२ उबाल आ जाये तब पिसे हुए दाल को बड़ा बना कर उबलते दही में सीधे डालें और ढक कर पकने दें.
जब पक जाये तो टंडा करें और गरमा गर्म चावल के साथ मज़ा लें.
बोरे बासी : पुरानी बची भात मे पानी डालकर बनाया जाता है बोरे बासी
*बोरे बासी*
घाम घरि के दिन म बासी गजब सुहाथे जी
नुनमिरचा अउ गोंदली सन पसिया बने पियाथे जी
आमा चटनी के अमसुर नुनछुर म बने खवाथे जी
हरन हम छत्तीसगढ़िया पेज म तन जुड़ाथे जी
ठंड़ा मतलब बोरे बासी ईहि हरय हमर जलपान जी
खाथन बटकी हढ़िया हढ़िया
हरय इही हा हमर गांव देहात के पहचान जी!
जिमी कांदा : जिमी-जिमी, कांदा-कांदा वाला गाना तो आप सभी ने सुना ही होगा जिमी कांदा महि मे
जिमीकंद को पहले फिटकरी के टुकड़ों के साथ उबाल लें और चौकोर टूकड़ो में काट कर थोड़े देर धुप में सुखा लेवें .अब कड़ाई में तेल ले कर टूकड़ों को थोडा लाल होते तक तल लेवें. अब दूसरी कड़ाई में ३-४ छोटे चम्मच ले कर गरम करें और उसमें सरसों के दाने , कड़ी पत्ते और और बारीक़ कटे टमाटर भून लें .अब इसमें नमक , हल्दी और धनिया पावडर दाल कर अच्छे से भुन लेवें .अब मसाला में तले हुए जिमीकंद के टूकड़ों को मिला कर पकने दें
अब एक बर्तन में ५०० ग्राम दही लेकर उसमें १-२ चम्मच बेसन मिला ले और पानी मिलकर थोडा पतला कर लें और पकते हुए मसाला और जिमीकंद में ढाल दें.पुरे मिश्रण को १० मिनट तक पकने दें और दही पकने के बाद गैस बंद कर दें.
ठंडा होने के बाद जिमीकंद कढ़ी को गरमा गरम चावल के साथ मज़े से खावें.
करेला के भरता : करेला के भरता बनाने के १/२ किलो छोटे करेले लीजिये अगर बड़े करेले ले रहे हों तोह उसे २-३ छोटे टुकड़ों में काट लीजिये। अब करेलों को धो कर अच्छे से बहार की परत को छील लें। कुछ लोग करेले की कड़वाहट को कम करने के लिए छिले हुए करेले को कुछ देर नमक के पानी में डूबाकर छोड़ देते हैं। इस विधि में हम ऐसा नहीं कर रहे हैं।
अब आप छिले हुए करेलों को बीच से लम्बाई में काट लें। और चाहें तोह बीच से करेलों के बीजों को निकल लें। छत्तीसगढ़ी खाद्य विधि में बीजों का महत्व है जिसके कारण हम इसे नहीं हटा रहे हैं।
अब करेलों में भरने के लिए मसलों की तैयारी करते हैं। मसलों में सबसे ज्यादा भाग धनिया पाउडर का रहता है। आप ३-४ छोटे चम्मच धनिया पाउडर का लें इसमें २-३ छोटे चम्मच जीरा पाउडर और १/२ चम्मच हल्दी ,मिर्ची पाउडर और १/२ चम्मच अमचूर पाउडर या फिर आधा निम्बू का रस मिला लें। अब इसमें थोड़ा पानी डाल कर मिश्रण तैयार कर लें।
अब इस तैयार मसलों के मिश्रण को थोड़ा थोड़ा ,बीच से कटे हुए करेलों के बीच भरें। जब सभी करेलों में मसाले भर जाये तब एक कड़ाई में तेल ले कर गरम करें , और जब तेल गरम हो जाए तो धीरे धीर एक एक करेलों को तेल में रखें। जब सारे करेलों को तेल में रख लें फिर ढक कर मधयम आंच में पकने दें। ७-८ मिनट के बाद ढककर खोलें और करेलों को पलट दें, और खुला करके धीमी आंच में पकने दें. १५-२० मिनट में भरवां करेले गर्म चांवल और दाल के साथ खाने के लिए तैयार हैं।
नोट: करेला प्रयातः बहुत से लोगों को पसंद नहीं होता ,पर हम सभी को इसके स्वास्थवर्धक गुणों के बारे में पता है। छत्तीसगढ़ में लोगों के बाडियों में करेले की बेलें प्रयातः पाई जाती है। करेला मधुमेह(शुगर),कोलेस्ट्रोल नियंत्रक और खून साफ़ करने वाला होता है।
चुनचुनिया भाजी – चुनचुनिया भाजी या तीन पनिया भाजी बनाने के लिए सबसे पहले अच्छे -अच्छे पत्तों वाली भाजी को छांट लें. ये भाजी बहुत ही मुलायम होती है इसलिए इसकी डंडी को नहीं निकालेंगे. अब जब अच्छे पत्तों को अलग किया गया है उन्हें पानी में डूबा कर २-३ बार धोएं ,जिससे उसमें चिपकी हुई सारी मिटटी अच्छे से निकल जाये।
अब एक कुकर में मुट्ठी भर चना दाल ले कर अच्छे से धो लें और उसे १ सिटी
होने तक उबाल लें। जब १ सिटी हो जाये तो कुकर ठंडा होने का इंतज़ार करें और
जब ठंडा हो जाये तब कुकर खोल कर चुनचुनिया भाजी को डालें और ढक्कन बंद
करके फिर से एक सिटी दें।
२-३ सुखी लाल मिर्च और लहसून की कलियाँ छोटे छोटे टुकड़ो में काट लें। एक
कड़ाही में २-३ चम्मच तेल डालें और गरम होने दें। जब गरम हो जाये तो उसमें
कटी हुई लहसून और मिर्च डालें और कुकर खोल कर उबली हुई भाजी और चने की दाल
को कड़ाई में पलटें। सभी को ठीक तरह से मिलाएं और स्वादअनुसार नमक छिड़क कर
थोड़ी देर के लिए ढक कर पकाएं। ५ मिनट के बाद ढ़क्कन खोल कर अच्छी तरह से
मिलाएं। और गैस को अब बंद कर दें।
नोट : चुनचुनिया भाजी कुछ ही जगह खायी जाती है उसमें से छत्तीसगढ़ एक है। यह ज्यादातर तालाब के आस पास उगती है.यह छोटी सी दिखने वाली पत्तियां खनिज लवण और फाइबर से भरी होती है। तीन पनिया भाजी की पत्तियां स्वाद में मिठास लिए होने के कारण पकने के बाद स्वादिष्ट होती हैं।
कड़ी : एक पतीले में एक कटोरी बेसन लेकर थोडा पानी और नमक के साथ मिलाकर अच्छी तरह से फेंटे और थोडा कड़ा पेस्ट बना लें .
एक कड़ाई में तेल गरम करें , सरसों के दाने ,कर्री पत्ता और खड़ी लाल/ मिर्च डाल लें
१ कटा टमाटर डालें और नमक मिलाकर पकाएं थोड़े देर बाद हल्दी और धनिया पावडर मिलाएं और पकने दें.
साथ साथ एक अलग बर्तन में 500gram दही लें और पानी मिला कर पतला कर लें. उसमें २-३ स्पून बेसन मिलाये और मिला ले
अब इस दही के मिक्स को कड़ाई के मसाले में मिला कर पकने दे.
जब १-२ उबाल आ जाये तब सेव बनाने वाले सांचे से सेव सीधे उबलते हुए दही में सीधे डालें और ढक कर पकने दें.
जब पक जाये तो ठंडा करें और गरमा गर्म चावल के साथ मज़ा लें.
इढाहर: सबसे पहले अरबी (कोचैई ) के पत्तों को बारीक़ काट लें.रात भर भींगी हुई उड़द की दाल को पिस लें और कोचैई के कटे पत्तों को उसमें फेंट लें.और इस मिश्रण को भाप में पकाएं
भाप में पकाकर इनको चौकोर टुकड़ों में काट ले.अब कड़ाई में तेल गरम करें और इन टुकड़ों को लाल होते तक तल लेवें.गरम तेल में सरसों ,कड़ी मिर्च,और एक कटा टमाटर मिलाकर कर भुने और इसमें नमक,हल्दी पावडर और थोडा धनिया पावडर डालें.एक अलग बर्तन में ५०० ग्राम दही लें और पानी मिला कर मठ लें इसमें २-३ स्पून बेसन घोल लें और इस दही को कड़ाई में तडके के साथ मिला कर उबलने देवें .जब उबाल आना शुरू हो जाये तब अरबी के पकोड़ों को इसमें ढाल दें और कुछ देर पकने दें.गैस बंद करने के बाद तैयार कड़ी को ठंडा होने देवें. और बाद में गरमा गरम चावल के साथ परोसे.
कटवा( सलोनी) खारा : सबसे पहले २-३ छोटे चम्मच तेल गरम कर लें जो कि मोअन के लिए उपयोग होगा। एक कप में थोड़ा गर्म पानी ले लें। अब एक बड़े बर्तन में करीब आधा किलो मैदा लें। उसमें थोड़ा अजवाइन और स्वादानुसार नमक डालें और मोअन के लिए तैयार किया हुआ तेल डालें अब आते को अच्छे से मिलाएं। अब इसमें गरम किया हुआ पानी थोड़ा डाल लें और मैदे को घुटना शुरू करें। ज़रुरत पड़ने पर थोड़ा और पानी डाल मुलायम मिश्रण तैयार कर लें। मैदे के मिश्रण को डांक कर थोड़ी देर छोड़ दें।
करीब २० मिनट्स के बाद मैदे को खोलकर देखे ,और मैदे के माध्यम आकार के गोले तैयार कर लें। एक गोला लें और दोनों हथेली के बीच रख कर थोड़ा दबाएं और पाटे पर रखें। गोले पर एक तेल की बून्द डालें ताकि बेलते समय वह पाटे से चिपके नहीं।
अब गोले से एक बड़ी और पतली चपाती बनायें ,और उसे उर्ध्वा और क्षैतिज रख कर काट लें. आप इसे वर्गाकार या डायमंड आकार में काट सकते हैं। जब सारे गोलों से सलोनी काट ली हो तब एक कड़ाई में तेल लेकर गरम करें। अब एक टुकड़ा डाल कर देखें की तेल गरम हुआ है कि नहीं ,अगर टुकड़ा ऊपर आ जाये तो तेल ठीक से तलने के लिए गरम हो चुका है।
अब कुछ टुकड़ों को तेल में डाल कर माध्यम आंच में तलें। और बीच बीच में पलटते रहे ताकि हर ओर से अच्छी तरह सेंक सके। धीरे धीरे सलोनी सफ़ेद से सुनहरा हो जाये तब इसे तेल से से बहार निकाल लें। सभी टुकड़ों को अच्छे से इसी तरह सेंक लें।
सलोनी या नमकपारे तैयार हैं।
नोट : यह पारम्परिक पकवान छत्तीसगढ़ में लगभग हर त्यौहार का हिस्सा है। वैसे तोह यह पूरे भारतवर्ष में अलग अलग नामों से जाना जाता है पर छत्तीसगढ़ में इसे कटवा( सलोनी) खारा कहा जाता है। यह कम खर्चीला और बनाने में सरल होने के साथ साथ बहुत दिनों तक रखा जा सकता है।
मसूर की कड़ी : १ घंटे से पानी में दुबे हुए सबोत मसूर की दाल को कुकर में पानी डालकर थोडा नमक स्वाद अनुसार लेकर ५-६ सिटी होने तक उबल लें.अब एक कड़ाई में तेल गरम करें और सरसों के दाने , करी पत्ते , और कड़ी लाल मिर्च २-३ दाल कर बघार लें .इसमें कटे प्याज़ डालें और थोडा भूनने
के बाद हल्दी और धनिया का पावडर मिला दें . तडके में कुकर में पकी हुई दाल मिलकर पकने दें २-३ मं बाद एक बर्तन में २५० ग्राम दही लेकर पानी मिलकर थोडा पतला करें और १ चमच बेसन मिला कर अच्छे से घोल लें और इस दही को पकती हुई दाल में मिला दें और ५-७ मं तक ठीक से पकने दे. मसूर की कड़ी का मज़ा गरमा गरम चावल के साथ लें.
भजिया /पकोड़ी कढ़ी : सबसे पहले पकोड़ियों या भजिये की तैयारी करेंगे। इसके लिए एक कटोरे में बेसन ,कटी प्याज (इच्छानुसार) ,थोड़ी कटी हरी मिर्च ,हरी धनिया , नमक,हल्दी पाउडर , जीरा पाउडर डालें और पानी डाल कर अच्छे से फेंट ले.
एक कड़ाई में तेल गरम करें और फेंटे हुए बेसन के छोटे छोटे गोले बनाकर गरम तेल में डालते जाएँ और मध्यम आंच में सुनहरा होते तक सेंक लें। कढ़ी की तैयारी
एक कड़ाई में तेल गरम करें , सरसों के दाने ,कर्री पत्ता और खड़ी
लाल मिर्च डाल लें
१ कटा टमाटर डालें और नमक मिला कर पकाएं। थोड़े देर बाद हल्दी और धनिया पावडर मिलाएं और पकने दें।
साथ साथ एक अलग बर्तन में 500gram दही लें और पानी मिला कर पतला कर लें. उसमें २-३ स्पून बेसन मिलाये और थोड़ा नमक,हल्दी पाउडर,जीरा पाउडर ,धनिया पाउडर मिलाएं। अब इसमें थोड़ा पानी डालकर ग्राइंडर में थोड़ा चला लें या फिर मथनी से मथ कर मठा तैयार कर लें।
अब इस दही के मिक्स को कड़ाई के मसाले में मिला कर पकने दे.
जब १-२ उबाल आ जाये तब पकोड़ियों को उबलते हुए दही में सीधे डालें और ढक कर पकने दें.
जब पक जाये तो ठंडा करें और गरमा गर्म चावल के साथ मज़ा लें.
टिप्पणी : भजिया /पकोड़ी कढ़ी छत्तीसगढ़ियों के खाने का एक प्रमुख अंग है। ऐसे तोह पुरे भारत में लोग इसे खाते और पसंद करते हैं परन्तु पारम्परिक रूप से गायों से बने उत्पादों पर निर्भरता ज्यादा होने के कारण कढ़ी को दोपहर के भोजन में जरूर बनाया और खाया जाता है। यह प्रोटीन का भरपूर स्त्रोत है।
मिर्ची भजिया : ६-७ लम्बी,हलकी हरी और थोड़ी मोटी मिर्ची लें। इसे बीच में से लम्बा काट लें। अब उसमें से सारे बीज हटा लें। अब खाली मिर्ची में थोड़ा अजवाइन छिड़कें।सारी मिर्चियों के साथ ऐसा ही करें।
एक बर्तन में १ कटोरी बेसन लें और इसमें नमक ,हल्दी और पीसी लाल मिर्च पाउडर डालें। आप इसमें थोड़ा खाने का बेकिंग सोडा डाल सकते हैं। अब पानी डाल कर अच्छे से मिलाये और पेस्ट बना लें। पेस्ट न ज्यादा मोटा रहना चाहिए और न ही ज्यादा पतला।
अब एक कड़ाई में तेल गरम करें। तेल गरम हुआ है की नहीं देखने के लिए १ बून्द बेसन का पेस्ट इसमें टपकाएं। अब तैयार कटी मिर्चियों को बेसन के घोल में डूबा कर तेल में डालते जाएँ और मधयम आंच में तलें। थोड़ी देर में जब इसका रंग सुनहरा हो जाएँ तब आप इसे बहार निकल लें। गरमा गरम मिर्ची भजिया तैयार है जिसे आप हरी चटनी या सॉस के साथ स्वाद उठा सकते हैं।
नोट :मिर्ची भजिया सादगी और स्वाद का एक उदाहरण है। छत्तीसगढ़ मे इसे त्योहारों पर बनाया जाता है
डेन्स(कमल ककड़ी) : छत्तीसगढ़ में डेंस बहुत स्वाद से खायी जाती हैं। इसे कच्चा सलाद के रूप में या पका कर सब्जी के रूप में खायी जाती है।
डेंस को पहले धो कर छील लें। अब उसे गोल गोल काट लें। कटे हुए डेंस को कुकर मे चने की दाल के साथ डालें और थोड़ा पानी डाल कर थोड़ा नमक ,हल्दी उबलने के लिए चढ़ा दें। जब ५-६ सिटी हो जाए तब उतार लें। एक दूसरी कड़ाई में २-३ चमच्च तेल गरम करें। जब तेल गरम हो जाए तब इलाइची और तेज पत्ता डालें फिर बारीक कटी प्याज़ और लहसून अदरक का पेस्ट डाल कर भून लें। जब पेस्ट थोड़ा भूरा हो तब बारीक़ कटे टमाटर या पिसे टमाटर डालें और भून लें। भुनाने पर नमक स्वादानुसार ,,पीसी धनिया ,पीसी हल्दी ,पीसी मिर्ची डालें और थोड़े देर और भून लें. जब मसाले में से तेल बहार आने लगे तब कुकर में उबले हुए डेंस चने की दाल और साथ के गरम पानी को मिला लें और ढँक कर पका लें। थोड़ी देर बाद जब डेंस और दाल थोड़े गाढ़े हो जाएँ तब गैस बंद कर लें। ऊपर से पिसा हुआ जीरा पाउडर और बारीक़ कटी धनिया पत्ती डालें। डेंस या कमल ककड़ी की सब्जी गरम चाँवल के साथ परोसें।
नोट : कमल ककड़ी या डेंस बहुत ही पोषक और खनिज लवन् से भरे होते है। हड्डियों के लिए बहुत लाभकारी ,रेशेदार और अच्छे एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।
बघारे भात /बघरा चांवल : १ प्याज़ ,हरी मिर्च ,१ टमाटर को काट लें। अब एक कड़ाई में १-२ छोटे चम्मच तेल गरम करें। उसमें जीरा ,कटी मिर्च ,कटे प्याज़ और मीठा नीम पत्ता (यदि उपलब्ध हो तो) डालें। जब प्याज़ हलकी भूरी होने लगे तब कटे हुए टमाटर डाल कर साथ में पकाएं। थोड़ी देर बाद नमक,हल्दी पाउड अच्छे से सभी को मिलाएं और थोड़ी देर पकने दें। अब इसमें पके हुए चांवल को डालें और मिलाएं। थोड़ी देर तक धीमी आंच में सेंक लें फिर गैस बंद कर दें। गरमा गरम बघारे भात का मज़ा लें।
नोट : छत्तीसगढ़ में बघारे भात /बघरा चांवल सुबह के नास्ते में अक्सर खाया जाता है। यह बचे हुए चांवल को दुबारा उपयोग में लाने का अच्छा तरीका है साथ साथ बहुत ही सरलता से कम समय में बनता है।
अमारी भाजी : अमारी यानि अम्बाडी भाजी भिण्डी (मालवेसी) कुल का एक वर्षीय झाड़ीदार पौधा है जिसे देश के ज़्यादातर हिस्सों में सब्जी वाली फसल के रूप में उगाया और खाया जाता है। इसकी मुलायम पत्तियों एवं टहनियों को भाजी के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी पत्तियों का स्वाद खट्टा होने के कारण इसका उपयोग रसम आदि दक्षिण भारतीय व्यजनों को बनाने में किया जाता है । मुलायम पत्तियों के अलावा इसके वाह्य दल पुंज (पुष्प कलियाँ) को भी खट्टा भाजी, कढ़ी,चटनी और सलाद आदि बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों में बीटा केरोटीन, आयरन और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। अमारी भाजी की प्रति 100 ग्राम खाने योग्य पत्तियों में 86.4 ग्राम जल, प्रोटीन 1.7 ग्राम, वसा 1.1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 9.9 ग्राम, कैल्शियम 172 मि.ग्रा., फॉस्फोरस40 मि.ग्रा., आयरन 2.28 मि.ग्रा.,के अलावा कैरोटिन 2898 माइक्रोग्राम, थायमिन 0.07 मिग्रा.,राइबोफ्लेविन 0.39 मिग्रा.,नियासिन 1.1 मिग्रा. एवं विटामिन ‘सी’ 20 मिग्रा. पाया जाता है। इसमें 56 कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है. इसमें पाए जाने वाले एमिनो अम्ल में लाइसिन की मात्रा अधिक होती है जिसकी वजह से इसे अन्य धान्य फसलों (चावल, गेंहू) के साथ खाने से शरीर में प्रोटीन का अच्छा संतुलन बनता है। अमारी के वाह्यदल पुंज में 3.74% साइट्रिक अम्ल और 3.19 % पेक्टिन पाया जाता है, जिससे इसका उपयोग जेली आदि बनाने में भी किया जाता है.इसकी भाजी जुलाई से फरवरी तक उपलब्ध रहती है।
बरै / कुसुम भाजी : बर्रे भाजी यानि कुसुम या करडी कम्पोसिटी कुल का पौधा है, जो रबी (शीत ऋतु) की तिलहनी फसल है। प्रारम्भिक अवस्था में जब इसके पौधे छोटे एवं वानस्पतिक अवस्था (बुआई के 30-35 दिनतक) रहते है तब उनकी पत्तियां एवं कोमल ताने को भाजी के रूप मेंइस्तेमाल किया जाता है। कुसुम की भाजी मेथी और पालक भाजी से अधिक पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्द्धक होती है । कुसुम की मुलायम नईपत्तियों में, प्रोटीन, आयरन तथा कैरोटीन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है । इसकी 100 ग्राम पत्तियों में 91 ग्राम जल, प्रोटीन 2 ग्राम, वसा 1 ग्राम, रेशा 1 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 4 ग्राम, 33 कि कैलोरी उर्जा,कैल्शियम 185 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 35 मि.ग्रा. और आयरन 6 मि.ग्रा. पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कैरोटीन 3540 माइक्रोग्राम, थाईमिन 0.04 मिग्रा., राइबोफ्लेविन 0.10 मिग्रा. तथा विटामिन ‘सी’ 15 मिग्रा. पाई जाती है। यही नहीं कुसुम की पत्तियों में अन्य खनिज लवण जैसे मैग्नीशियम 51 मिग्रा.,सोडियम 126.4 मिग्रा.,पोटैशियम 181 मिग्रा.,कॉपर 0.22 मिग्रा., एवं क्लोरीन 235 मिग्रा. पाया जाता है । कुसुम की पत्तियां अन्य आवश्यक एमिनो अम्ल में भी काफी धनी होती है। इनमे पर्याप्त मात्रा में लाइसिन पाया जाता है। अतः धान्य खाध्य जिनमें लाइसिन की कमीं होती है उनके साथ कुसुम भाजी का सेवन आहार को पौष्टिक बनता है । कुसुम के फूलों से स्वादिष्ट चाय बनाई जाती है, जो ह्रदय और शुगर के मरीजों के लिए काफी लाभदायक होती है।
चना भाजी : चना जो लेग्युमिनोसी कुल के उपकुल पैपिलिओनेसी का सदस्य है जो शीत ऋतु (रबी) की प्रमुख दलहनी फसल है। प्रारंभिक अवस्था में जब पौधे छोटे रहते है तब उनकी मुलायम पत्तियों एवं फुन्गियों (शीर्ष) को तोड़कर स्वादिष्ट भाजी तैयार की जाती है. सर्दियों की रात में खाने में चने के साग के साथ मक्का या बाजरे की रोटी का स्वाद सिर्फ खाकर ही लिया जा सकता है। चने का साग खाने में पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। इसकी पत्तियों में पर्याप्त मात्रा में रेशा तथा आयरन पाया जाता है। चने का साग हमारे शरीर में प्रोटीन की आपूर्ति करता है इसलिए इसे प्रोटीन का राजा भी कहा जाता है. इसकी प्रति 100 ग्राम खाने योग्य पत्तियों में 73.4 ग्राम जल, प्रोटीन 7 ग्राम, वसा 1.4 ग्राम, रेशा 2 ग्राम, कार्बोहाड्रेट 14.1 ग्राम, कैल्शियम 340 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 120 मि.ग्रा., आयरन 23.8 मि.ग्रा.,के अलावा पर्याप्त मात्र में कैरोटिन,थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन पाया जाता है. इसमें 97 कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है.चने की पत्तियां औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है. यह खाने में शीतकारी प्रकृति की होती है। पत्तियों में स्तंभक गुण होने के कारण अस्थमा रोगों में लाभकारी होती है। पत्तियों का रस कब्ज, डायबिटिज, पीलिया आदि रोगों में बहुत फायदेमंद होता है। इसकी पत्तियों को उबालकर चोट एवं जोड़ों की हड्डियों को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है.
कांदा भाजी : कांदा अर्थात शकरकंद एक वर्षीय कनवोल्वलेसी कुल की लता है, जिसे प्रमुख रूप से कंद के लिए वर्षा ऋतु में लगाया जाता है । इसके कंद लाल या भूरे रंग के होते है । शकरकंद को कच्चा, भुन कर अथवा पकाकर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है। कंदों के साथ-साथ इसकी पत्तियां भी पौष्टिक एवं स्वास्थ्य वर्धक होती है। इसकी कोमल एवं मुलायम पत्तियों से भाजी बनाई जाती है। इसकी पत्तियों में 1.42 % रेशा, 6.4 % लिपिड, 13.5 % प्रोटीन, 67.8 % कार्बोहायड्रेट, 196 पी.पी.एम. आयरन और 100 ग्राम भाग में 328 किलो कैलोरी उर्जा पाई जाती है । शकरकंद की पत्तियों का औषधीय महत्त्व भी है । इसमें विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं जो शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद करतेहैं। इसकी पत्तियों के सेवन से ब्लड शुगर का स्तर कम करने में मदद होती है। इसकी पत्तियों में एंटी-कार्सिनोजेन पाया जाता है जो कैंसर से लड़ने में मदद करता है। शकरकंद की पत्तियों में फाइबर भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो सूजन को दूर करने में कारगरहोता है।
मूली भाजी : मूली में गंध सल्फर यौगिक की उपस्थिति के कारण होती है। मूली की पत्तियों में जड़ों की अपेक्षा अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है। मूली की 100 ग्राम पत्तियों में 91 ग्राम जल, प्रोटीन 4 ग्राम, रेशा 2 ग्राम , कार्बोहाड्रेट 2 ग्राम, कैल्शियम 265 मि.ग्रा., एवं फॉस्फोरस 59 मि.ग्रा. पाया जाता है. इसमें 28 कि. कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है। इसके अलावा इसमें विटामिन बी, विटामिन सी व विटामिन ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा मैशनिशियम व लौह तत्व व क्लोरीन की मौजूदगी से मूली के पत्तों से मूत्र संबंधित विकारों में लाभ मिलता है। मूली के पत्तों के सेवन से रक्त में ग्लूकोज कम करने में सहायता मिलती है, जिससे बल्ड शुगर नियंत्रण में रहता है। मूली के पत्तों के सेवन से पेट की कब्ज, गैस व एसीडिटी जैसी समस्याओं से निजात मिलती है। मूली के पत्तों में मौजूद डीटाक्सीफिकेशन एजेंट शरीर में मौजूद विषैले तत्वों को बाहर करते हैं और खून साफ रखने में भी सहायता करते हैं। इसके लिए आप मूली के पत्तों का रस या इसका साग अथवा पाउडर खा सकते हैं।
गोभी भाजी : फूल गोभी शरद ऋतु की लोकप्रिय सब्जी है। इसके फूल को पकाकर स्वादिष्ट सब्जी तैयार की जाती है। इसके फूल से अचार भी बनाया जाता है। इसकी कोमल और मुलायम पत्तियों से भाजी भी बनाई जाती है.गोभी की पत्तियों में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. इन पत्तियों में जितनी मात्रा में कैल्शियम होता है, उतना किसी दूसरी सब्जी में नहीं होता है ।साथ ही इसकी पत्तियां फाइबर का भी अच्छा सोर्स होती हैं। इसकी 100 ग्राम पत्तियों में 80 ग्राम जल, प्रोटीन 6 ग्राम, वसा 1 ग्राम, रेशा 2 ग्राम , कार्बोहाड्रेट 8 ग्राम, ऊर्जा 66 की कैलोरी, कैल्शियम 626 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 107 मि.ग्रा. और आयरन 40 मि.ग्रा. पाया जाता है। इसकी पत्तियों को खाने से दांत और हड्डियां मजबूत बनती हैं, पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इसकी पत्तियां शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी काफी कारगर होती है।
पालक भाजी : जब हम हरी पत्तेदार सब्जियों की बात करते है तो सबसे पहले पालक का नाम ही आता है भाजियों में सबसे महत्वपूर्ण पालक लगभग हर घर में खाई जाती है। यह ठन्डे मौसम की सबसे स्वास्थ्य वर्धक भाजी मानी जाती है। गर्मीं में इसमें शीघ्र ही फूल आने लगते है। पालक पोषक तत्वों का खजाना है. इस में प्रोटीन, वसा, खनिज तत्व, रेशा, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम, मैग्नेशियम, आयरन, एवं विटामिन ‘ए’ ‘सी, प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसकी 100 ग्राम पत्तियों में 92 ग्राम जल, प्रोटीन 2 ग्राम, वसा 1 ग्राम, रेशा 1 ग्राम , कार्बोहाड्रेट 3 ग्राम, कैल्शियम 73 मि.ग्रा., फॉस्फोरस 21 मि.ग्रा. और आयरन 2 मि.ग्रा. पाया जाता है। इसमें 43 कि कैलोरी उर्जा विद्यमान रहती है। पालक भाजी शीतल, स्वास्थ्यवर्द्धक, सुपाच्य, रक्तशोधक होती है.यह पथरी, स्कैबीज, श्वेत कुष्ठ के रोगियों के लिए लाभकारी होती है। एनीमिया से पीड़ित व्यक्तियों के लिए पालक का साग अथवा सूप बेहद फायदेमंद होता है।इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ‘ए’ विद्यमान होने के कारण यह आँखों के लिए फायदेमंद है। इसके सेवन से पाचन तंत्र सुचारू रूप से काम करता है। पर्याप्त मात्रा में आयरन और विटामिन ‘सी’ होने के कारण यह शरीर के मेटाबोलिज्म को सही करता है।मधुमेह और ह्रदय रोगियों के लिए भी पालक गुणकारी है। पालक शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढाती है।