Maa Champai
Maa Champai महासमुन्द से लगभग ११ किलोमीटर कि दुरी पर मोहन्दी ग्राम पर घनघोर पहाड़ी के ऊपर चम्पई माता विराजमान है यहा जाने के लिये उत्तम सड़क मार्ग है|
चम्पई माता का इतिहास
७ वीं शताब्दी के चीनी पर्यटक व्हेनात संघ के यात्रा-आलेख के अनुसार छत्तीसगढ़ के ३६ मृतित्का गढ़ में से एक गढ़ “चंपापुर” हुवा| ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार कलचुरी वंशज राजा भीमसेन द्वीतीय कि राजधानी चंपापुर के नाम से विख्यात था चंपापुर की नगर देवी “चम्पेश्वरी – देवी’’ थी चम्पेश्वरी देवी आज भी ब्रम्हागिरी पर्वत कि महादेव-पठार नामक स्थान के एक गुफा विराजमान है आस पास के ग्रामीण वर्तमान में भी चम्पेश्वरी-माता कि पूजा –अर्चना बड़ी श्रध्दा के साथ कर रहे है| शारदीय-नवरात्रि एवं चैत्र नवरात्रि के समय यहाँ पर ग्रामीणों के सहयोग से ज्योति –कलश प्रज्वलित करने का विधान वर्षो पूर्व से पारम्परिक तरीको से मनाया जाता है| परन्तु राजकीय उपेक्षा के कारण यह ऐतिहासिक स्थान विलुप्त के कगार पर है|
ऐतिहासिक तथ्य एवम दिशा-निर्देशों के अनुशार सम्भवतः बौधकालीन ब्रम्हागिरी,पर्वत महादेव-पठार नामक पर्वत सिद्ध होता है | इस पर्वत का उद्गम गौरखेड़ा ग्राम से एवम अंत लोहारगाँव नामक ग्राम के पास कोड़ार – नाला के समीप होता है | इस पर्वत पर पश्चिम से पूर्व ३ भव्य पठार एवम ५ खौफनाक गुफाये है| इन गुफावो में से वर्तमान “रानी खोल’’ गुफा एवम चम्पेश्वरी-माता गुफा सुरंग मार्ग से जुड़ा हुवा प्रतीत होता है| एवम आभास होता है कि ये दोनों गुफाये भूमिगत संघाराम भवन का प्रवेश एवम निर्गम द्वार है|
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार चम्पापुर के राजा भीमसेन द्वीतीय पर दुसरे राजा जयराज ने आक्रमण कर
पारजित किया पराजित राजा भीमसेन द्वीतीय के भ्राता भरतबल कि रूपमती पत्नी जो
तात्कालिक कौशल नरेश राजकन्या थी-को सुरक्षा कि दृष्टीकोण से सुरक्षित स्थान
नागार्जुन-संघाराम में भूमिगत सुरंग मार्ग से ले जाकर रख दिया था| युद्ध समाप्ति
पश्चात पराजीत राजा भीमसेन द्वतीय तथा भरतबल ने इस जंगल में रानी लोकप्रभा की खोज
कि लेकिन रानी का कही अता-पता नहीं चल पाया |खोज होता रहा ,परन्तु रानी कहा गायब हुई कैसे गायब हुई ,क्या जंगली
जानवरों के चपेट में आ गई?
किसी को कुछ पता ही नहीं चला |हताश राजा भीमसेन और भरतबल खल्लवाटिका [ खल्लारी ]
के तात्कालिक राजा हरिब्रहादेव कि शरण में
सुरक्षा हेतु पंहुचा |भरतबल ने पत्नी वियोग में दुखी होकर आत्महत्या कर लिया
कुछेक पश्चात ,भीमसेन की भी
मृत्यु हो गया| यह इतिहास के पन्नो में दर्ज है परन्तु इस स्थान का पुरातात्विक अन्वेषण आज तक
नहीं हो पाया ?
आक्रमण के कारण “चम्पापुर’’ का वैभव तहस – नहस हो गया | बचे-खूचे पुरवासी २ – ३ हिस्सों में बटकर पलायन कर गए कुछ लोग उस स्थान को छोड़कर वर्तमान बेलर ग्राम में जाकर बसे तथा कुछ लोग पर्वत के पूर्व कि तलहटी में बस गए बसाहट पश्चात इस स्थान को ‘’चंपाई’’ ग्राम से जाना गया शेष बचे लोग यत्र-तत्र जीवकोपार्जन हेतु पलायन कर गए-इस तरह प्राचीन चम्पापुर वीरान हो गया
कालांतर में समस्त खल्लारी क्षेत्र कोमाखान जमीदारी के अंतर्गत समाहित हो गया तत्कालीन जमीदारी समस्त खल्लारी प्रक्षेत्र को सिदार जाती के आदिवासी मालगुजारो के आधीन कर दिया इस परिपाटी में चंपाई का भू-भाग भी सिदार जाती के मालगुजार एवम गोड़ जाति के गढ़ियो[गौटिया] के कब्जे में आ गया |सिदार जाति के प्रथम मालगुजार ने मोहंदी नाम का गाव बसाया अपने सुरुआती काल में मोहन्दी ग्राम का बसाहट ‘डीहभाठा’ नामक स्थान पर स्थापित था |क्रमशः धीरे –धीरे चंपाई ग्राम एवम बेलर ग्राम के कुछेक निवासी भी डीहभाठा में आकर बस गए |समयानुसार डीहभाठा आबाद होते गया ,परन्तु तात्कालिक मालगुजार के परिवार का वंश-वृद्धि क्षीण होते चला गया अन्धविश्वास के कारण डीहभाठा को अपने वंशजो के लिए शापित समजकर मालगुजार उस स्थान को छोड़कर नीचे के स्थान में बस गया |उसी समय सिदार मालगुजार,जो पनेकाडीह का मालगुजार था उसने डील को छोड़कर नीचे के स्थान में आ गया-और इस तरह मोहदी ग्राम का निर्माण हुवा |समय के अनुसार लोग डीहभाठा और पनेकाडीह को भूल गए,तथा मोहन्दी ग्राम ही अस्तित्वमें आ गया
मोहन्दी ग्राम के अस्तित्व में आने के पूर्व,ग्राम के उत्तर में एक डीह अस्तित्व में थाः जहां कुछ साँवरा जाति के लोग बसे हुवे थे |बँहडोला डबरी उन लोंगो का निस्तारी तलैया था तथा “लजगरहीन माता ” उनके डील कि आराध्य देवी थी परन्तु ये साँवरा लोग कहा गायब हुवे ,डील कैसे उजड़ा-ये सब नेपथ्य के गर्त में है