joharcg.com जन्माष्टमी के पावन अवसर पर अयोध्या में श्रीरामलला को एक विशेष परिधान में सजाया गया, जो ननिहाल से भेजा गया था। इस खास मौके पर श्रीरामलला के दिव्य रूप को संजोने के लिए नये और भव्य परिधान का चयन किया गया, जिसने पूरे मंदिर परिसर को आभायुक्त कर दिया।
ननिहाल से भेजे गए इस विशेष परिधान को जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीरामलला के लिए सजाया गया। इस परिधान में पारंपरिक भारतीय कपड़े और अमूल्य आभूषण शामिल थे, जो श्रीरामलला की दिव्यता को और भी बढ़ा रहे थे। परिधान की विशेषताओं में उसकी रंगीनता, बारीक कढ़ाई और भव्य डिज़ाइन शामिल थे, जो इसे अनूठा बनाते हैं।
आयोजन के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गई, जिसमें भक्तों ने श्रीरामलला के इस नए रूप को देखकर श्रद्धा और भक्ति के साथ उनका दर्शन किया। जन्माष्टमी के उत्सव के इस भाग में श्रीरामलला की भव्य सजावट और परिधान ने समारोह को और भी खास बना दिया।
स्थानीय श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने इस विशेष परिधान की प्रशंसा की और इसे श्रीरामलला के प्रति गहरी श्रद्धा और प्यार का प्रतीक बताया। परिधान की खूबसूरती और धार्मिक महत्व ने भक्तों को भावुक कर दिया और इस धार्मिक उत्सव की विशेषता को और भी बढ़ा दिया।
जन्माष्टमी पर श्रीरामलला के विशेष परिधान का यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व को दर्शाता है, बल्कि अयोध्या की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक परंपराओं की झलक भी प्रस्तुत करता है। इस अवसर पर मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ देखी गई, जिन्होंने श्रीरामलला के इस अद्भुत रूप को देखकर इस पावन दिन को यादगार बना दिया।
प्रभु श्री रामलला अयोध्या मे प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपनी सम्पूर्ण दिव्यता और आभा से सुशोभित हैं। प्राणप्रतिष्ठा के पश्चात पहली जन्माष्टमी में बस्तर के श्रमसाधकों द्वारा विशेष रूप से तैयार किए गए पीले खादी सिल्क से निर्मित शुभवस्त्र से सुशोभित प्रभु श्री रामलला की अलौकिक छटा दर्शनीय है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कहा है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पुनीत अवसर पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ स्थल में श्रीरामलला को छत्तीसगढ़ में निर्मित पीली खादी सिल्क से निर्मित वस्त्र धारण कराना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। यह वस्त्र बस्तर के शिल्पियों द्वारा निर्मित है। दंडकारण्य जहां मर्यादा पुरुषोत्तम ने अपने वनवास का अधिकांश समय व्यतीत किया, वहां से भेजा वस्त्र धारण करने का समाचार वास्तव में भावुक करने वाला है। भांचा श्रीराम की कृपा उनके ननिहाल पर बरसती रहे यही कामना है।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ जहां के लोगों ने भगवान श्रीराम और माता कौशल्या का सदैव प्रेम और आशीर्वाद पाया है, यहां की माटी में आज भी वही दिव्यता है जो भगवान राम के चरणों से पवित्र हुई है। छत्तीसगढ़ जिसे प्रभु श्री राम के ननिहाल होने का गौरव है यहां पग-पग में प्रभु श्री राम की यादें दिखाई पड़ती है। बस्तर अंचल जिसे दंडकारण्य भी कहा जाता है, जहां प्रभु राम ने वनवास काल का अधिकांश समय व्यतीत किया है, वहां के शिल्पियों द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर उनके ननिहाल से भेजा गया विशेष परिधान धारण करना छत्तीसगढ़ के जन-जन के लिए गर्व का क्षण है।
मामागांव के परंपरागत वस्त्रों में भांचा राम के सुशोभित होने से सभी छत्तीसगढ़वासियों का हृदय गर्व और असीम आनंद से परिपूर्ण है। यह अद्वितीय वस्त्र हमारी परम्पराओं और संस्कारों का प्रतीक है जो भगवान श्री राम और माता कौशल्या को छत्तीसगढ़ की भूमि से जोड़ता है। यह वस्त्र केवल एक परिधान नही, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा, हमारी अडिग आस्था और भांचा राम के प्रति हमारे प्रेम एवम श्रद्धा का प्रतीक है।