joharcg.com पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है, जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस दौरान श्राद्ध और तर्पण जैसे अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। पितरों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता जताने के लिए ये क्रियाएँ जरूरी मानी जाती हैं। लेकिन सवाल यह है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण क्यों आवश्यक हैं? आइए जानें इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व।
श्राद्ध का शाब्दिक अर्थ है श्रद्धा से किया गया कर्म। यह अनुष्ठान उन पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए किया जाता है, जो इस संसार से जा चुके हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से उम्मीद करते हैं कि वे उन्हें श्रद्धांजलि दें। श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वंशजों पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
तर्पण एक विशेष धार्मिक क्रिया है जिसमें जल और अन्य पवित्र वस्त्रों को अर्पित करके पूर्वजों की आत्मा को संतोष प्रदान किया जाता है। यह प्रक्रिया पितरों की तृप्ति के लिए की जाती है। तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिलती है और वंशजों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। तर्पण के बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है, इसलिए इसे खासतौर पर पितृ पक्ष में करना आवश्यक माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करता है, तो उसे पितृ दोष का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए, पितृ दोष को दूर करने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
श्राद्ध और तर्पण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का भी माध्यम है। इन अनुष्ठानों से परिवार के सभी सदस्य एकजुट होते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। यह न केवल पूर्वजों के प्रति कर्तव्य है, बल्कि उनके आशीर्वाद से हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
श्राद्ध और तर्पण का अनुष्ठान करने का एक विशेष तरीका होता है, जिसे पुरोहितों की मदद से संपन्न किया जाता है। इसमें पवित्र भोजन, जल और वस्त्रों का अर्पण शामिल होता है। श्राद्ध करने का सबसे शुभ समय पितृ पक्ष के दौरान होता है, जब व्यक्ति अपने पितरों की तिथि पर यह अनुष्ठान करता है।
पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। यह अनुष्ठान न केवल हमारी धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति लाने का माध्यम भी है। पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन अनुष्ठानों को सच्चे मन और श्रद्धा से करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं, साथ ही श्राद्ध और तर्पण देकर श्रद्धा प्रकट करते हैं। साल 2024 में 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है और 2 अक्तूबर तक श्राद्ध पक्ष रहेगा। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि अगर कोई व्यक्ति पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध नहीं करता, अपने पूर्वजों को तर्पण नहीं देता तो उसके जीवन में क्या परेशानियां आ सकती हैं। पितृदोष के साथ ही ऐसे लोगों को कई अन्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। आज हम इसी बारे में आपको जानकारी देंगे।
पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध तर्पण और दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। साथ ही पितृऋण से भी हमको मुक्ति मिलती है। मार्कंडेय पुराण में वर्णित है कि, जो व्यक्ति पितृ पक्ष के दौरान श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर्म करता है, उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। ऐसे व्यक्ति को जीवन में संपत्ति और संतति की प्राप्ति होती है। साथ ही घर परिवार में ऐसे लोगों को सुख-समृद्धि देखने को मिलती है। वहीं अगर श्राद्ध, तर्पण न किया जाए तो इसके गंभीर परिणाम व्यक्ति को भुगतने पड़ सकते हैं।
पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण न करने से क्या होता है
पितृ रहते हैं असंतुष्ट- मान्यता है कि यदि पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध नहीं किया जाता, तो पितरों की आत्मा तृप्त नहीं हो पाती और वे असंतुष्ट रह जाते हैं, इससे पितृ दोष तो लगता ही है साथ ही कई अन्य परेशानियां भी जीवन में आती हैं। इससे घर में आर्थिक कठिनाइयाँ या अन्य प्रकार के संकट आ सकते हैं। हर काम बिगड़ने लगता है और जीवन नीरस हो जाता है।
कर्मों पर नकारात्मक असर- कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध न करने से व्यक्ति के पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों की पूर्ति नहीं हो पाती, जिससे उसके कर्मों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसका असर उसके जीवन में कष्ट और बाधाओं के रूप में हो सकता है। ऐसे लोगों की योजनाएं कभी सफल नहीं हो पातीं और दर-बदर की ठोकरें वो खा सकते हैं।
व्यक्ति की संतान पर बुरा प्रभाव- अगर आप पितरों का श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं तो ये आपके लिए तो अशुभ होता ही है, साथ ही आपकी आने वाली पीढ़ी को भी इसका बुरा फल भुगतना पड़ सकता है। इसके कारण आपकी संतान को भी समस्याएं आ सकती हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार बच्चों में कुछ रोग जन्मजात हो सकते हैं।
मानसिक और शारीरिक समस्याएं- पितरों का आदर सत्कार पितृ पक्ष के दौरान हम करते हैं। लेकिन जो लोग श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं करते उनको शारीरिक और मानसिक समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है।
अपयश लगने का खतरा- अगर आप अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करते तो आप पर झूठे आरोप लग सकते हैं, आप बिना कुछ किए भी फंस सकते हैं और अपयश आपको जीवन भर झेलना पड़ सकता है।
यानि समाज में आपका नाम खराब होता है। इसलिए हर व्यक्ति को पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध-तर्पण अवश्य करना चाहिए। आप अपने सामर्थ्य के अनुसार इस दौरान दान भी कर सकते हैं, क्यों आपके द्वारा किया गया दान भी पितरों को प्रसन्न करता है।