Chendaru The Tiger Boy
Chendaru बस्तर का “टाइगर ब्वाय” चेंदरू था पहला भारतीय हालीवुड हीरो……
शकुंतला दुष्यंत के पुत्र भरत बाल्यकाल में शेरों के साथ खेला करते थे वैसे ही बस्तर का यह लड़का शेरों के साथ खेलता था। इस लड़के का नाम था चेंदरू। बस्तर मोगली नाम से चर्चित चेंदरू पुरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहुर था।
सन् 1960 का घने जंगलो से घिरा घनघोर अबूझमाड़ का बस्तर….पुरे बस्तर में फैला मुरिया जनजाति के लोगो का साम्राज्य……इन घने जंगलो में चेंदरू नाम का 10 वर्षीय बच्चा खतरनाक शेरों के साथ सहज तरीके से खेल रहा है,अठखेलियाँ कर रहा है…पर उसे कहाँ मालूम था कि उसकी किस्मत किस करवट लेने वाली है।
उधर घने जंगलो का दौरा करते स्वीडिश डायरेक्टर अर्ने सुक्सडोर्फ़ की नजर इस बच्चे पर पड़ी,जंगल में शेरों के साथ सहज दोस्ती डायरेक्टर को इतनी भा गई कि उनसे रहा नहीं गया…..फिर तैयार हुआ एक ऑस्कर विनिंग फिल्म “जंगल सागा”.जिसमे लीड रोल पर था बस्तर का “टाइगर ब्वाय” चेंदरू……. 1960 में चेंदरू ने प्रसिद्धि का वो दौर भी देखा जो उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा। 90 मिनट की मूवी “जंगल सागा” जब पुरे यूरोपीय देशों के सेल्युलाईड परदे पर चली तो लोग चेंदरू के दीवाने हो गए, चेंदरू रातोंरात हालीवुड स्टार हो गया।
स्वीडन में चेंदरू ने जब वहां कि आधुनिक जिंदगी देखी तो किसी सपने से कम नहीं था ।स्वीडन में चेंदरू कुछ सालों तक डायरेक्टर के घर पर ही रुका रहा। फिर वापिस भारत आ गया, तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी ने चेंदरू को मुंबई रुकने की सलाह दी। पर भीड़भाड की जिंदगी से दूर और पिता के बुलावे पर चेंदरू वापिस अपने घर आ गया जहाँ फिर उसकी जिंदगी अभावो से गुजरती हुई बीती।
78 साल के चेंदरू की स्थिति गंभीर बनी हुई है ‘टार्जन’ और ‘टाइगर ब्वाय’ के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ के चेंदरू मौत और ज़िंदगी से जूझ रहे थे
चेंदरू को जगदलपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना था कि. चेंदरू की स्थिति गंभीर बनी हुई है
साल 1957 में ऑस्कर अवार्ड विजेता आर्ने सक्सडॉर्फ ने स्वीडिश में ‘एन द जंगल सागा’ नाम से फ़िल्म बनाई थी, जिसे अंग्रेज़ी में ‘दि फ्लूट एंड दि एरो’ नाम से जारी किया गया था. इस फ़िल्म में 10 साल के चेंदरू ने बाघों और तेंदुओं के साथ काम किया था. उस समय आर्ने सक्सडॉर्फ ने लगभग दो साल तक बस्तर में रह कर पूरी फ़िल्म की शूटिंग की थी. फ़िल्म में लगभग 10 बाघ और आधा दर्जन तेंदुओं का उपयोग किया गया था.
फ़िल्म में दिखाया गया था कि किस तरह चेंदरू का दोस्त गिंजो एक मानवभक्षी तेंदुए को मारते हुए ख़ुद मारा गया और उसके बाद चेंदरू की किस तरह बाघ और तेंदुओं से दोस्ती हो गई.
जब फ़िल्म का प्रदर्शन हुआ तो चेंदरू को भी स्वीडन समेत दूसरे देशों में ले जाया गया.साल 1958 में कान फिल्म फेस्टिवल में भी यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई. गढ़बेंगाल गांव से कभी बाहर नहीं गए चेंदरू फ़िल्म की वजह से महीनों विदेशों में रहे.
उनकी तो जैसे दुनिया ही बदल गई.
चेंदरू ने एक बार बातचीत में बताया था कि किस तरह विदेश में लोग उन्हें देखने आते थे और हैरान हो जाते थे कि इतना छोटा बच्चा बाघ के साथ रहता है, खाता-पीता है और उसकी पीठ पर बैठकर जंगल में घूमने की बातें करता है. चेंदरू रातों रात दुनिया भर में मशहूर हो गए.
संस्कृतिकर्मी और पुरातत्वविद राहुल सिंह कहते हैं, “इस फ़िल्म में रविशंकर ने संगीत दिया था, लेकिन हालत ये थी कि रविशंकर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत थे और उस समय उन्हें चेंदरू के संगीतकार के तौर पर जाना जाता था.”
जब किशोर उम्र के चेंदरू विदेश से वापस गांव आए तो फिर उनके सामने ज़मीनी सच्चाई थी. समय के साथ चेंदरू नारायणपुर और बस्तर के जंगल में गुम होते चले गए. गढ़बेंगाल गांव के लोग बताते हैं कि चेंदरू जब विदेश से लौटे तो कई साल तक वे अनमने से रहे. गांव के लोगों से अलग-थलग और बदहवास से.
कभी-कभी उन पर जैसे दौरा पड़ता था और वे फिर अपने अतीत में गुम जाते थे.हमारे जैसे, पत्रकार बस्तर जाने पर अनिवार्य रुप से गढ़बेंगाल जाते थे और चेंदरू से मिलते थे. लेकिन कम से कम दो बार ऐसा हुआ, जब चेंदरू हमें आता देखकर जंगल की ओर भाग खड़े हुए. तब घर वालों ने बताया कि पैंट-शर्ट पहनकर आने वाले को देखकर वे भाग जाते थे
नब्बे के दशक में चेंदरू को तलाशकर लंबी रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार केवल कृष्ण कहते हैं, “किसी भी दूसरे मुरिया आदिवासी की तरह चेंदरू बेहद खुशमिज़ाज और बहुत सारी चीज़ों की परवाह न करने वाले हैं लेकिन चेंदरू के सामने उनका अतीत आकर खड़ा हो जाता है, एक सपने की तरह. इससे वे मुक्त नहीं हो पाए.”
चेंदरू के बेटे जयराम मंडावी को लगता है कि अगर उनके पिता को आर्थिक मदद मिलती, तो शायद उनकी हालत ऐसी नहीं होती.
जयराम कहते हैं, “जब पिताजी बीमार पड़े तो एक जापानी महिला ने डेढ़ लाख रुपए की मदद की. इसके अलावा छत्तीसगढ़ के एक मंत्री ने 25 हज़ार रुपए दिए लेकिन इससे पहले और इसके बाद किसी ने हमें पूछा तक नहीं. ”चेंदरू ने एक बार बातचीत में बताया था कि उन्हें शूटिंग के दौरान दो रुपए रोज़ मिलते थे.
मुंबई में उनकी मुलाकात तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी हुई थी और नेहरू जी ने उन्हें पढ़ने-लिखने पर नौकरी देने का भरोसा दिया था.
विदेश में भी चेंदरू को दूरबीन, चश्मा और टोपी जैसी चीजें मिली थीं, जिन्हें बाद में जगदलपुर का एक ठेकेदार धोखे से लेकर चला गया.
चेंदरू के पास कुछ भी नहीं बचा, सिवाय फ़िल्मकार आर्ने सक्सडॉर्फ की पत्नी एस्ट्रीड सक्सडॉर्फ की लिखी एक फोटो फीचर वाली किताब ‘चेंदरू’ के, जिसमें चेंदरू की कई तस्वीरें थीं. उसके प्यारे बाघ टेंबू के साथ भी.
चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे और इसके लिए उनकी पत्नी एस्ट्रीड सक्सडॉर्फ भी तैयार थीं लेकिन दोनों के बीच तलाक के बाद फिर किसी ने चेंदरू को पूछा तक नहीं.
चेंदरू को बुढ़ापे में भी उम्मीद थी कि एक दिन उन्हें तलाशते हुए आर्न सक्सडॉर्फ गढ़बेंगाल गांव ज़रूर आएंगे लेकिन 4 मई 2001 को आर्ने सक्सडॉर्फ की मौत के साथ ही चेंदरू की यह उम्मीद भी टूट गई.
बस्तर की कला संस्कृति को लेकर बनाए गए प्रदर्शनकारी समूह ‘बस्तर बैंड’ के निर्देशक अनूप रंजन पांडेय कहते थे, “दो साल पहले जब चेंदरू को पक्षाघात हुआ और वे थोड़े ठीक होकर घर लौटे तो हमारे जैसे लोग खुश थे. लेकिन इस बार की बीमारी ने हमें दुखी कर दिया है.”
सन 2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो की मौत हो गयी । बस्तर की इस प्रतिभाशाली गौरवगाथा की याद में छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर के जंगल सफारी में चेंदरू का स्मारक बना कर सच्ची श्रध्दान्जली दी है।
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