Jay Ganga Maiya
Jay Ganga Maiya गंगा मैया मंदिर छत्तीसगढ़ की बालोद तहसील में बालोद-दुर्ग रोड के पास झलमला में स्थित है। यह ऐतिहासिक महत्व वाला धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का एक गौरवशाली आनंद और बहुत ही करामाती इतिहास है। मूल रूप से, गंगा मैया मंदिर का निर्माण एक स्थानीय मछुआरे ने एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में किया था। बालोद की एक स्थानीय धार्मिक मान्यता गंगा मैया मंदिर की उत्पत्ति से संबंधित है। प्रारंभ में, मंदिर एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में बनाया गया था। कई भक्तों ने अच्छी मात्रा में धनराशि दान की जिससे इसे एक उचित मंदिर परिसर में बनाने में मदद मिली। चूँकि यह बालोद – दुर्ग मार्ग पर स्थित है, इसलिए छत्तीसगढ़ के किसी भी जिले से मंदिर तक पहुँचना बिलकुल सुविधाजनक है।
प्राचीन कथा जुड़ी देवी मां के मंदिर से
धार्मिक स्थल मां गंगा मैया की कहानी अंग्रेज शासन काल से जुड़ी हुई है। उस समय जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था, करीब 125 साल पहले। उस दौरान झलमला की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहां सोमवार के दिन ही यहां का बड़ा बाजार लगता था। जहां दूर-दराज से पशुओं के विशाल समूह के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को पूरा करने के लिए बांधा तालाब नामक एक तालाब की खुदाई कराई गई। मां गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति
किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई, लेकिन केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर घर चला गया।
स्वप्न में कहा मुझे निकालें बाहर
देवी मां की प्रतिमा को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। केवट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया। इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ।
माता के स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर
स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।
Photo Gallery
Jay Ganga Maiya Ganga Maiya temple Ganga Maiya temple Ganga Maiya temple Ganga Maiya temple