joharcg.com दंतेवाड़ा। आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में गांवों की महिलाएं भी अहम भूमिका निभा रही हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की महिलाएं आज रेशम उत्पादन और बुनाई के जरिए अपनी नई पहचान गढ़ रही हैं। परंपरागत कार्य को आधुनिक स्वरूप देकर उन्होंने न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारी है, बल्कि पूरे समाज में महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी पेश की है।
पहले ये महिलाएं सीमित संसाधनों और घरेलू जिम्मेदारियों के कारण आत्मनिर्भर नहीं बन पाती थीं। लेकिन सरकार की योजनाओं और स्व-सहायता समूहों से जुड़कर अब उन्होंने रेशम उत्पादन में सफलता की नई कहानी लिखी है। प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग मिलने के बाद महिलाओं ने कोसा रेशम की खेती और धागा उत्पादन का कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे इस कार्य ने आकार लिया और आज यह रोजगार का मजबूत जरिया बन चुका है।

रेशम धागे से महिलाएं सुंदर वस्त्र और शॉल तैयार कर रही हैं, जिनकी बाजार में अच्छी खासी मांग है। स्थानीय हाट-बाजारों से लेकर शहरों तक इन उत्पादों को खरीदार मिल रहे हैं। कुछ महिलाएं अब ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिए भी अपने उत्पाद बेच रही हैं, जिससे उनकी आय कई गुना बढ़ गई है।
रेशम कार्य से जुड़ी एक महिला बताती हैं, “पहले हम घर के खर्च पूरे करने के लिए संघर्ष करते थे, लेकिन अब रेशम उत्पादन ने हमें आर्थिक स्वतंत्रता दी है। बच्चों की पढ़ाई और परिवार की जरूरतें आसानी से पूरी हो रही हैं।”

दंतेवाड़ा प्रशासन का कहना है कि इस काम को और प्रोत्साहित करने के लिए आधुनिक उपकरण, डिजाइनिंग प्रशिक्षण और विपणन सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है। उद्देश्य यह है कि महिलाएं केवल रोजगार तक सीमित न रहें, बल्कि सफल उद्यमी बनें।
रेशम उत्पादन ने इन महिलाओं की जिंदगी को नई दिशा दी है। अब वे न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। इस पहल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है और क्षेत्र की पारंपरिक कला को भी नया जीवन मिला है।
दंतेवाड़ा की यह कहानी साबित करती है कि यदि अवसर और मार्गदर्शन मिले तो महिलाएं किसी भी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की नई मिसाल कायम कर सकती हैं।