joharcg.com रतन टाटा, जिनका नाम उद्योग जगत में सम्मान और प्रतिष्ठा से लिया जाता है, ने अपने जीवन के कई पहलुओं में सफलता हासिल की। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि रतन टाटा ने एक बार फिल्मी दुनिया में भी कदम जमाने की कोशिश की थी। उद्योगपति के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद, उन्होंने फिल्मों की ओर रुख किया था, लेकिन यह सफर बहुत लंबा नहीं चला।
रतन टाटा की फिल्मों में दिलचस्पी का एक अहम किस्सा तब सामने आया जब उन्होंने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के लिए एक इकलौती फिल्म का निर्माण किया। उस समय, बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन का सिक्का चलता था और उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही थीं। रतन टाटा ने सोचा कि वे फिल्म निर्माण में भी अपना हाथ आजमा सकते हैं, और इसीलिए उन्होंने बच्चन साहब के साथ इस परियोजना को शुरू किया।
फिल्म का निर्माण टाटा समूह के तहत हुआ, जिसमें रतन टाटा की व्यक्तिगत रुचि भी जुड़ी हुई थी। हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाई और यह रतन टाटा की फिल्मी करियर की पहली और आखिरी फिल्म साबित हुई।
जहां फिल्मों में रतन टाटा को वह सफलता नहीं मिल पाई जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी, वहीं उन्होंने उद्योग जगत में अपने अनुभव और दूरदृष्टि से बेमिसाल ऊंचाइयां हासिल कीं। टाटा समूह को ग्लोबल स्तर पर पहचान दिलाने के पीछे रतन टाटा का ही नेतृत्व था।
रतन टाटा के फिल्म निर्माण में कदम रखने के पीछे उनका यह मानना था कि फिल्मों के जरिए भी समाज को कुछ नया और सकारात्मक दिया जा सकता है। उनके व्यक्तित्व में यह विशेषता हमेशा दिखती रही है कि वे सिर्फ व्यापार को नहीं, बल्कि समाज सेवा और लोगों की भलाई को भी महत्व देते थे। फिल्म निर्माण के इस छोटे से प्रयास के बाद, उन्होंने फिर से कभी इस दिशा में काम नहीं किया, लेकिन यह उनके जीवन का एक रोचक अध्याय बन गया।
चाहे फिल्मी दुनिया में उन्हें सफलता न मिली हो, लेकिन रतन टाटा ने भारतीय उद्योग और समाज के लिए जो योगदान दिया है, वह हमेशा याद रखा जाएगा। उनकी फिल्मी कोशिश उनके जीवन का एक अनछुआ पहलू है, जो बताता है कि वह हमेशा नए क्षेत्रों में कदम रखने से नहीं घबराते थे। उनके जीवन की यही विशेषता उन्हें अन्य उद्योगपतियों से अलग बनाती है।
नई दिल्ली । टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा की मौत ने पूरे देश को गम में डुबो दिया है। रतन टाटा की शख्सियत एक बिजनेसमैन से परे रही। बड़े दिल वाले रतन टाना एक विजन के साथ जिए और उन्होंने अपनी लाइफ को एक मिशन में तब्दील किया। देश के हर घर में रतन टाटा, टाटा ग्रुप के जरिए किसी न किसी तरह समाए हुए हैं। रतन टाटा ने हर फील्ड को एक्सप्लोर किया।
देश के सबसे बड़े कॉन्गलोमरेट के चेयरमैन ने अलग-अलग फील्ड्स में अलग-अलग पैमाने तय किए और सफलता भी हाथ लगी। अगर वो किसी क्षेत्र को अपना नहीं बना सके तो वो सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री है। जी हां, उन्होंने इस क्षेत्र में भी हाथ आजमाया था, लेकिन खासा सफलता उनके हाथ नहीं लगी। अगर आप सोच रहे हैं कि रतन टाना एक्टर बने या फिल्म की कहानी का लेखन किया तो ऐसा नहीं है, उन्होंने फिल्म बनाने के लिए पैसे लगाए, यानी उनकी भूमिका एक प्रोड्यूसर की रही।
रतन टाटा ने बतौर प्रोड्यूसर फिल्मों में कदम जमाने की कोशिश लेकिन उनकी पहली कोशिश नाकाम साबित हुई। इसके बाद ही उन्होंने फिल्मों से तौबा कर लिया और इसे टेढ़ी खीर भी माने। रतन टाटा की बनाई इकलौती फिल्म ‘ऐतबार’ है, जो 2004 में सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को रतन टाटा ने जितिन कुमार, खुशबू भधा और मंदीप सिंह के साथ मिलकर प्रोड्यूस किया था। फिल्म का निर्देशन विक्रम भट्ट ने किया और इसमें अमिताभ बच्चन, जॉन अब्राहम, बिपाशा बसु, सुप्रिया पिलगांवकर, अली असगर, टॉम आल्टर और दीपक शिरके जैसे कलाकारों ने महत्वपूर्ण रोल अदा किए थे। फिल्म के म्यूजिक पर काम राजेश रोशन ने किया था।
क्या थी ‘ऐतबार’ की कहानी
‘ऐतबार’ 1996 में रिलीज हुई अमेरिकी फिल्म ‘फियर’ का रूपांत्रण थी। ‘फियर’ पर पहले भी एक हिंदी रूपांतरण बन चुका था, जिसका नाम ‘इंतेहा’ है। खास बात ये है कि इस फिल्म को भी विक्रम भट्ट ने ही डायरेक्ट किया था। ये फिल्म सिर्फ तीन महीने पहले ही अक्टूबर 2003 में रिलीज हुई थी। ऐतबार’ की कहानी एक बाप डॉ. रणवीर मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) की है, जो अपने बेटे रोहित को खोने के बाद बेटी रिया (बिपाशा बसु) को लेकर बेहद प्रोटेक्टिव है। वो अपनी बेटी को पजेसिव और अनप्रेडिक्टेबल लड़के आर्यन (जॉन अब्राहम) के साथ संबंध रखने से रोकने की कोशिश में लगा है, लेकिन बेटी उसे नजरअंदाज करते हुए उससे मिलना-जुलना जारी रखती है।
फ्लॉप हुई थी फिल्म
23 जनवरी 2004 को रिलीज हुई इस फिल्म ‘ऐतबार’ के बॉक्स ऑफिस वर्डिक्ट की बात करें तो यह फिल्म फ्लॉप रही थी। फिल्म ने लागत के पैसे भी नहीं वसूल किए। 9.30 करोड़ रुपये में बनीं इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 7.96 करोड़ का ही कलेक्शन किया था। यह फिल्म कमर्शियली फेलियर साबित हुई और यही वजह बनी कि रतन टाटा फिर कभी किसी फिल्म में पैसा नहीं लगाए।