joharcg.com भारत की राजनीतिक और चुनावी प्रणाली में ऐतिहासिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, केंद्र सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा को मंजूरी दी है। इस नई योजना के तहत देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक ही समय पर आयोजित करने की योजना है। माना जा रहा है कि इस प्रस्तावित विधेयक को शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में भारत में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे समय, धन और संसाधनों की खपत अधिक होती है। इस नई पहल का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और बार-बार चुनाव कराने से होने वाले वित्तीय और प्रशासनिक बोझ को कम करना है।
इस प्रस्ताव के अनुसार, पूरे देश में एक ही बार चुनाव होंगे, जिसमें राज्यों की विधानसभाओं और संसद दोनों के लिए मतदान होगा। यह प्रणाली चुनाव खर्चों को कम करने, प्रशासनिक बाधाओं को हल करने और चुनावी आचार संहिता के बार-बार लागू होने से बचने के लिए प्रस्तावित है, जिससे विकास कार्यों में विलंब न हो।
अगर ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पारित हो जाता है, तो भारत की चुनावी प्रणाली में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। अभी तक हर राज्य और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होते आए हैं। इसके कारण चुनावी आचार संहिता बार-बार लागू होती है, जिससे विकास कार्यों पर असर पड़ता है।
एक साथ चुनाव कराने से जहां जनता के समय की बचत होगी, वहीं राजनीतिक दलों और सरकारों को भी इससे बड़ी राहत मिलेगी। सरकारों को अपने कार्यकाल के दौरान बार-बार चुनाव की चिंता नहीं करनी पड़ेगी, जिससे नीतियों और योजनाओं पर बेहतर ढंग से काम किया जा सकेगा।
इस योजना के तहत विधेयक को लेकर तैयारी शुरू हो चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि शीतकालीन सत्र के दौरान यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा। अगर यह विधेयक पास होता है, तो इसका प्रभाव पूरे देश में होगा और आने वाले चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह बदल देगा।
जहां सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ को समय और धन की बचत का एक शानदार तरीका बता रही है, वहीं विपक्षी दलों ने इसे लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि यह प्रणाली राज्य सरकारों के स्वतंत्र कामकाज में बाधा डाल सकती है और राज्यों के मुद्दे राष्ट्रीय चुनावी मुद्दों के साथ मिल सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय समस्याएं नजरअंदाज हो सकती हैं।
‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा भारतीय चुनावी प्रणाली में सुधार का एक बड़ा कदम हो सकता है। हालांकि, इसके पक्ष और विपक्ष में बहस अभी जारी है, लेकिन अगर यह विधेयक पारित होता है, तो यह देश की राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
इस प्रणाली से न केवल चुनावी खर्चों में कमी आएगी बल्कि यह प्रशासनिक दृष्टि से भी प्रभावी साबित हो सकती है। शीतकालीन सत्र में इस पर क्या निर्णय लिया जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
नई दिल्ली। ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने रखी गई। कैबिनेट से इसे मंजूरी भी मिल गई है। कहा जा रहा है कि सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पेश कर सकती है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने लोकसभा चुनावों के एलान से पहले मार्च में यह रिपोर्ट पेश की थी। कैबिनेट के सामने रिपोर्ट पेश करना विधि मंत्रालय के 100 दिवसीय एजेंडे का हिस्सा था।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर कोविंद समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर लिया है। कोविंद समिति को एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यापक समर्थन मिला है। मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को मंजूरी दी है। उन्होंने यह भी कहा कि कोविंद समिति की सिफारिशों पर पूरे भारत में विभिन्न मंचों पर चर्चा की जाएगी। बड़ी संख्या में दलों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है। हम अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने का प्रयास करेंगे।
लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश
उच्च स्तरीय समिति ने पहले चरण के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। इसके 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने की बात कही गई है। समिति ने सिफारिशों के क्रियान्वयन पर विचार करने के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ के गठन का भी प्रस्ताव रखा है।
समिति के मुताबिक, एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत होगी। विकास और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिलेगा। लोकतांत्रिक ढांचे की नींव मजबूत होगी। इससे ‘इंडिया, जो भारत है’ की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी।
एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की बात
समिति ने राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से चुनाव आयोग की ओर से एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की भी सिफारिश की थी। फिलहाल भारत का चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों को ही देखता है। नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोगों की ओर से कराए जाते हैं।
बताया गया कि समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं से समर्थन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, इनके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की जरूरत होगी, जिन्हें संसद से पारित कराना होगा।
विधि आयोग भी अपनी रिपोर्ट लेकर आएगा
एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित परिवर्तनों को कम से कम आधे राज्यों से समर्थन की जरूरत होगी। इसके अलावा विधि आयोग भी जल्द ही एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट लेकर आने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके पूरजोर सथर्मक रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, विधि आयोग सरकार के सभी तीन स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं-पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है। त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार (यूनिटी गवर्नमेंट) के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है।