joharcg.com मेघनगर। सिर्फ जैन कुल में, संभ्रांत परिवार में जन्म लेने मात्र से ही कोई श्रावक नहीं बन जाता, श्रावक तो वही होता है जो जिनवाणी का श्रवण कर उसे अपने आचरण में उतारे। उक्त उद्गार नगर में ज्ञानतत्व तपोमय चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य साध्वीजी तत्वलताश्रीजी महाराज साहब ने अपने प्रवचन में फरमाते हुए कहा, साथ ही उन्होंने फरमाया कि मानव को कभी पुण्य के उदय की चाहना भी नहीं करना चाहिए, वह हमारे सद्कर्मों से स्वयं उदय में आते हैं, चाहना तो ऐसी होती है जिसका कोई अंत नहीं होता है, ये तो सदैव बढ़ती ही रहती है।
उक्त जानकारी देते हुए रजत कावड़िया ने बताया कि, गुरुवार को नगर में चल रही सामूहिक सिद्धि तप एवं भद्रतप आराधना के सामूहिक बियाशना संपन्न हुए, आज के बियाशना का लाभ जिनेंद्रकुमारजी, प्रांजल, हितज्ञ बाफना परिवार ने लिया। आज पूज्य साध्वीजी के दर्शन वंदन हेतु अलीराजपुर निवासी और नंदूरी (नानपुर) जैन तीर्थ के निर्माता काकड़ीवाला परिवार के कमलेशजी काकड़ीवाला सपरिवार पधारे। काकड़ीवाला का बहुमान, बहुमान के लाभार्थी परिवार, वोहरा परिवार, रूनवाल परिवार, रांका परिवार, कावड़िया परिवार ने किया।
यह समाचार बताता है कि धर्म और तप की महिमा को समझने और उसे अपने जीवन में उतारने का महत्व क्या है। इससे हमें धार्मिक ग्रंथों और धार्मिक गुरुओं की शिक्षाएं समझने के लिए प्रेरित मिलता है। इस समाचार से हमें एक अद्वितीय संदेश मिलता है कि कैसे एक आदर्श जीवन जीने के लिए धर्म और तप का महत्व है। इस प्रकार, इस समाचार के माध्यम से हमें सामाजिक एवं धार्मिक मूल्यों की महत्वपूर्णता का अनुभव होता है।,
जैन धर्म के संत सा. श्री तत्वलताश्रीजी ने हाल ही में अपने प्रवचनों में जिनवचनों के महत्व पर जोर दिया और बताया कि जो व्यक्ति जिनवचन को सुनता और उसे अपने जीवन में अपनाता है, वही सच्चे अर्थों में श्रावक कहलाता है। उनके अनुसार, जिनवचनों का श्रवण मात्र ही नहीं, बल्कि उनका अनुसरण भी जीवन को धर्ममय और सार्थक बनाता है।
सा. श्री तत्वलताश्रीजी ने अपने प्रवचन में कहा कि जिनवचन हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाले दिव्य शब्द हैं, जो हमें सही और गलत का भेद समझाते हैं। उन्होंने कहा कि श्रावक वह है जो जिनवचन को पूरी श्रद्धा के साथ सुनता है और उसे आत्मसात करता है। श्रवण करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है, और यही ज्ञान जीवन में शांति और समृद्धि लाने का साधन बनता है।
सा. श्रीजी ने आगे कहा कि जिनवचनों के श्रवण से व्यक्ति का मन निर्मल होता है और वह सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है। उन्होंने बताया कि जिनवचनों का पालन करने से न केवल व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है, बल्कि उसे सांसारिक जीवन में भी सफलता और संतोष मिलता है। जिनवचनों की शक्ति ऐसी है कि वह व्यक्ति को अपने भीतर छिपी दुष्प्रवृत्तियों से लड़ने की ताकत देती है और उसे आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाती है।
सा. श्रीजी ने श्रावकों से अपील की कि वे जिनवचनों को केवल सुनें ही नहीं, बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारें। उन्होंने कहा कि जिनवचन हमें संयम, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। जिनवचनों के श्रवण से हमारी आत्मा को शुद्धि मिलती है और हम धर्म के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति जिनवचनों को सुनकर उसे अपने जीवन में लागू करता है, वही सच्चा श्रावक कहलाने का हकदार है। उन्होंने कहा कि जिनवचनों का महत्व तब तक नहीं समझा जा सकता, जब तक हम उसे अपने जीवन में अपनाने का प्रयास नहीं करते। इसलिए, सच्चे श्रावक बनने के लिए हमें जिनवचनों के मार्गदर्शन में अपना जीवन जीना चाहिए।
सा. श्री तत्वलताश्रीजी के इस उपदेश ने सभी श्रावकों को जिनवचनों के प्रति अपने कर्तव्यों का स्मरण कराया और उन्हें धर्म के प्रति अधिक समर्पित होने की प्रेरणा दी। जिनवचनों के माध्यम से जीवन को धर्ममय और शुद्ध बनाने का संदेश उनके प्रवचनों से सभी को मिला।