tyohar teeja pola
तीजा पोला पर्व –
tyohar teeja pola छत्तीसगढ़ मे बहुत सारी त्योहारों को मनाया जाता है सबका अपना-अपना महत्व है। जिसको खास मौकों पर मनाया जाता है।
पोला- छत्तीसगढ़ में पोला मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। अगस्त महीने में खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद भाद्र पक्ष की अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है।
tyohar teeja pola पोला त्योहार मनाने के बारे में ऐसा कहा जाता है कि चूंकि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है अर्थात् धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है, इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोगों को खेत जाने की मनाही होती है।
पोला पर्व महिलाओं, पुरुषों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। पोला के कुछ ही दिनों के भीतर तीजा मनाया जाता है। महिलायें इसलिये पोला त्योहार के वक्त अपने मायके में आती हैं। इस दिन हर घर में विशेष पकवान बनाये जाते हैं जैसे ठेठरी, खुर्मी। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तन, खिलौने में पूजा करते समय भरते हैं ताकि बर्तन हमेश अन्न से भरा रहे। बच्चों को मिट्टी के बैल मिट्टी के खिलौने मिलते हैं। पुरुष अपने पशुधन को सजाते हैं, पूजा करते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। मिट्टी के बैलों को लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं जहाँ उन्हें दक्षिणा मिलती है।
तीजा व्रत- इसे भाद्रपद – माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाई जाती है। यह व्रत अविवाहित एवं विवाहित दोनों ही महिलाएँ रखती हैं। अविवाहित महिलाएँ मनपसन्द पति की कामना में और विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु होने की कामना करती हुई यह व्रत रखती है।
इस दिन सूर्य उगने से पहले ही महिलायें यह व्रत आरंभ कर देती है। सारा दिन उपवास रखती हैं। पानी भी नहीं पीती। संध्या के समय महिलायें मिट्टी या बालू से शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करती हैं। गौरा-गौरी की मूर्ति। गौरी (पार्वती) को लाल ज़री-गोटे वाले कपड़े पहनाती है और गौरा (शिव) को पीले कपड़े पहनाए जाते हैं। गौरा-गौरी की पूजा में नाना प्रकार के फल-फूलों के साथ जंगली फल, बेल, धतूरा और आक के फूल एवं पत्तियों का विशेष महत्व है। गुलाब के फूल के साथ धतूरे के नशीले फल चढ़ाये जाते हैं। विवाहित महिलायें बिछिया, चूड़ी, कंगन, पायल, सिंदूर, बिंदिया गौरी को समर्पित करती है। सारी रात गौरा-गौरी का पूजन किया जाता है। दूसरे दिन गौरा-गौरी को तालाब, नदी या कुयें में जाकर विसर्जन करते हैं। विसर्जन सूर्योदय से पहले करते हैं। जो वस्तुयें चढ़ाई जाती हैं, उसे किसी योग्य व्यक्ति को दान कर दी जाती है।
विवाहित महिलायें तीज को मायके में ही मनाती हैं। मायके में ही मनाए जाने की परंपरा है। इसलिए विवाहित महिलाओं का पोला के बाद अपने मायके जाना शुरु हो जाता है। बहुऐं तीजा मनाने मायके जाती हैं। और विवाहित बेटियाँ अपने घर गाँव तीजा मनाने आती हैं। तीजा मनाने आई बहू-बेटियों को नई साड़ी और चूड़ियाँ पहनाने की परंपरा है।
तीजा के बारे में अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं। एक कहानी इस प्रकार है –
गिरिराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती दिन रात शिव आअराधना में लगी रहती थी। एक दिन नारद ॠषि गिरिराज हिमालय के पास आये और विष्णु के साथ पार्वती की शादी की बात रखी। गिरिराज हिमालय इस प्रस्ताव से बहुत ही खुश हुए। पार्वती को इसके बारे में जब पता चला, तो वह बहुत दुखी हुई। पार्वती को दुखी देखकर उनकी दो सखियाँ जया और विजया भी बहुत उदास हो गई। उसके बाद दोनों ने निश्चय किया कि पार्वती की शादी विष्णु के साथ होने से रोकेगीं। कैसे रोकेगीं? दोनों सखियाँ पार्वती को राजमहल से चुपचाप निकालकर एक गुफा में ले गयीं। उस गुफा में पार्वती ने शंकर की बालू से मूर्ति बनाकर उनकी तपस्या आरम्भ कर दी। इस तपस्या को निर्जल, निराहार करने लगी। अन्त में शंकर भगवान आए और पार्वती को अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार कर लिया। गिरिराज हिमालय ने अपनी पुत्री का विवाह शंकर भगवान के साथ कर दिया।
ऐसा कहा जाता है कि पार्वती की तपस्या भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में सफल हुई थी, इसीलिये इस दिन को शुभ मानकर अविवाहित युवतियाँ शंकर भगवान की पूजा करती हैं। विवाहित महिलायें शिव पार्वती के युगल स्वरुप की पूजा करती है। इस व्रत के पहले पार्वती की सखियों ने पार्वती का हरण किया था, इसलिये यह व्रत हरतालिका तीज कहा जाता है। हरतालिका तीज के दिन पार्वती के गौरी स्वरुप की अराधाना की जाती है।