दुर्ग– जिले में खरीफ में कुल क्षेत्राच्छादन 142243 हेक्टेयर में से 129756 हेक्टेयर धान, 3688 हेक्टेयर सोयाबीन, 811 हेक्टेयर अरहर (निरा) एवं 7988 हेक्टेयर साग-सब्जी एवं अन्य फसलों की बुआई हुई है। वर्तमान मौसमी परिस्थिति एवं फसल स्थिति में जिले की मुख्य फसल धान में कीट व्याधि के प्रकोप की संभावना को दृष्टिगत रखते हुये विभागीय मैदानी अमलों को क्षेत्र में निरन्तर भ्रमण कर फसल व कीट व्याधि की स्थिति का सतत् निरीक्षण कर कृषकों को कीट व्याधि के उचित प्रबंधन हेतु समसामयिक सलाह दी जा रही है। वर्तमान में धान फसल में बैक्टिरिया लीफ ब्लाईट, शीथ ब्लाईट एवं भूरा माहों कीट का प्रकोप मुख्य रूप से देखा जा रहा है।
बैक्टिरिया लीफ ब्लाईट-(जीवाणु जनित झुलसा) जीवाणु से होने वाला रोग है जिसके लक्षण सामान्यता बोआईध्रोपाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देना प्रारंभ होते है। इसमें पत्ती किनारे वाले ऊपरी भाग से सूखने लगती है तथा रोग ग्रसित पौधे कमजोर हो जाते है तथा उसमें कम कन्सें निकलते है। रोग का प्रक्रोप दिखाई देते ही खेत का पानी निकाल कर 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से पोटाश का उपयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रासयनिक नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रासाइक्लिीन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत 15 ग्राम या कासुगामाइसीन और सी.ओ.सी. 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम प्रति एकड 200 लीटर पानी में उपयोग कर सकते है।
शीथ ब्लाईट-के लिए कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम या हेक्जाकोनाजोल 5.0 प्रतिशत 1.0 ली. 500 मिली. प्रति एकड़।
बैक्टीरियल लीफ स्ट्रीक -इस रोग में पत्तियों पर अलग-अलग धारीदार लाल भूरे रंग के धब्बे बनते है जो बाद में सफेद चकत्ते के रूप में हो जाते है, इसके नियंत्रण के लिए बलाइटक्स 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम या कापरआक्सीक्लोराइड 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ उपयोग करें।
भूरा माहों के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत, 80-100 मि.ली या बिफेनथ्रिन 10 प्रतिषत ई.सी. 100 मि.ली. या फेनोब्यूकार्न, 50 ई.सी., 400-500 मि.ली. या ब्यूप्रोफेजिन 25 प्रतिशत 120-200 मि.ली. प्रति एकड़।
समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु सलाह:- फसलों में कीट व्याधि के आर्थिक क्षति स्तर का ध्यान रखते हुये समुचित प्रबंधन हेतु समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार कर मैदानी अमलों द्वारा कृषकों को तकनीकी सलाह दी जा रही है। इसके अंतर्गत विभिन्न गैर रासयनिक तकनीको जैसे-प्रकाश प्रपंच, चिपचिपे प्रपंच, खेतों में टी आकार की खुटियां, अनुशंसित उर्वरक उपयोग करते हुये रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को न्यूनतम कर कीट व्याधि का समुचित प्रबंधन किया जा सकता है। इससे फसलों में पौध संरक्षण के साथ साथ हानिकारक रसायनों का पर्यावरण पर पडने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
जिला स्तरीय नियंत्रण कक्षः- जिले में कीट व्याधि की स्थिति की सतत् निगरानी एवं प्रबंधन हेतु सहायक संचालक कृषि को नोडल अधिकारी नियुक्त करते हुए जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष की स्थापना कार्यालय उप संचालक कृषि में की गयी है जिसका दूरभाष क्रमांक 0788-2323755 है के माध्यम से कृषक कीट व्याधि के संबंध में जानकारी प्राप्त कर विभाग द्वारा दी जा रही समसामयिक सलाह का उपयोग करते हुए कीट व्याधि नियंत्रण कर रहे है।